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कर्बला

अब्दु०––कमर, मामला इतना आसान नहीं है, जितना तुमने समझ रखा है। जायदाद के लिए इन्सान अपनी जान देता है, भाई-भाई दुश्मन हो जाते हैं, बाप-बेटों में, मियाँ-बीबी में तिफ़ाक़ पड़ जाता है। अगर उसे लोग इतनी आसानी से छोड़ सकते, तो दुनिया जन्नत बन जाती।

कम––यह सही है, मगर ईमान के मुकाबले जायदाद ही की नहीं,ज़िन्दगी की भी कोई हस्ती नहीं । दुनिया की चीजें एक दिन छूट जायँगी, मगर ईमान तो हमेशा साथ रहेगा।

अब्दु०––शहरब होना पड़ा, तो यह मकान हाथ से निकल जायगा। अभी पिछले साल बनकर तैयार हुआ है। देहातों में, जंगलों में बदुओं की तरह मारे-मारे घूमना पड़ेगा। क्या जलावतनी कोई मामूली चीज़ है?

कमर––दीन के लिए लोगों ने सल्तनतें तर्क कर दी हैं, सिर कटाये हैं, और हँसते-हँसते सूलियों पर चढ़ गये हैं। दीन की दुनिया पर हमेशा जीत रही है, और रहेगी।

अब्दु०––वहब, अपनी अम्माजान की बातें सुन रहे हो?

वहब––जी हाँ, सुन रहा हूँ, और दिल में फ्रनु कर रहा हूँ कि मैं ऐसी दीन-परवर मा का बेटा हूँ । मैं आपसे सच अर्ज़ करता हूँ कि कीस, हजार, हुर, अशअरा-जैसे रऊसा को बैयत कबूल करते देखकर मैं भी नीम राजी हा गया था, पर आपकी बातों ने हिम्मत मज़बूत कर दी। अब मैं सब कुछ झेलने को तैयार हूँ।

अब्दु०––वहब, दीन हम बूढ़ों के लिए है, जिन्होंने दुनिया के मज़े उठा लिये। जवानों के लिए दुनिया है। तुम अभी शादी करके लौटे हो, बहू की चूड़ियाँ भी मैली नहीं हुई। जानते हो, वह एक रईस की बेटी है, नाज़ों में पली है, क्या उसे भो खानावीरानी की मुसीबतों में डालना चाहते हो? हम और कमर तो हज करने चले जायँगे। तुम मेरी जायदाद के वारिस हो, मुझे यह तसकीन रहेगा कि मेरी मिहनत रायगा नहीं हुई। तुमने मा की नसीहत पर अमल किया, तो मुझे बेहद सदमा होगा। पहले जाकर नसीमा से पूछो तो?