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कर्बला

जिसे तूने गोद में प्यार से खिलाया था,जिसे तूने सीने से दूध पिलाया था-आज तुझसे रुखसत हो रहा है,और फिर शायद उसे तेरी ज़यारत नसीब न हो (रोते हैं)।

[मदीने के सब नगरवासियों का प्रवेश]

सब०-ऐ अमीर,आप हमें अपने कदमों से क्यों जुदा करते हैं। हम आपका दामन न छोड़ेंगे। आपके कदमों से लगे हुए गुरबत की खाक छानना इससे कहीं अच्छा है कि एक बदकार और ज़ालिम खलीफ़ा की सख्तियाँ झेलें। आप नबी के खानदान के आफ़ताब हैं । उसकी रोशनी से दूर होकर हम इस अँधेरे में खौफनाक जानवरों से क्योंकर अपनी जान बचा सकेंगे। कौन हमे हक और दीन की राह सुझायेगा ? कौन हमें अपनी नसीहतों का अमृत पिलायेगा ? हमें अपने कदमों से जुदा न कीजिए।

[रोते हैं।]

हुसैन-मेरे प्यारे दोस्तो,मैं यहाँ से खुद नहीं जा रहा हूँ। मुझे तकदीर लिये जा रही है। मुझे वह दर्दनाक नज़ारा देखने की ताब नहीं है कि मदीने की गलियां इस्लाम और रसूल के दोस्तों के खून से रंगी जायें। मैं प्यारे मदीने को उस तबाही और खून से बचाना चाहता हूँ। तुम्हें मेरी यही आखिरी सलाह है कि इस्लाम की हुरमत कायम रखना,जर लिए अपनी कौम और अपनी मिल्लत से बेवफ़ाई न करना,खुदा के नज़दीक इससे बड़ा गुनाह नहीं है।शा- यद हमें फिर मदीने के दर्शन न हों,शायद फिर हम इन सूरतों को न देख सकें;हाँ,शायद फिर हमें उन बुजुर्गों की सूरत देखनी नसीब न हो,जो हमारे नाना के शरीक और हमदर्द रहे,जिनमें से कितनों ही ने मुझे गोद में खिलाया है। भाइयो,मेरी ज़बान में इतनी ताकत नहीं है कि उस रंज और ग़म को ज़ाहिर कर सकूँ ,जो मेरे सीने में दरिया की लहरों की तरह उठ रहा है। मदीने की खाक से जुड़ा होते हुए जिगर के टुकड़े हुए जाते हैं। आपसे जुदा होते आँखों में अँधेरा छा जाता है,मगर मजबूर हूँ। खुदा की और रसूल की यही मंशा है कि इस्लाम का पौधा मेरे माल और