भी मुबाबिया की बैयत को हराम समझा,तो मैं क्यों खानदान में दाग़ लगाऊँ। इज़्ज़त की मौत बेइज़्ज़ती की ज़िन्दगी से कहीं अच्छी है।
अब्बास-(विस्मित होकर) खुदा की कसम,यह हुसैन की आवाज़ नहीं,रसूल की आवाज़ है,और ये बातें हुसैन की नहीं,अली की हैं । भैया! आपको खुदा ने अक्ल दी है,मैं तो आपका खादिम हूँ, मेरी बातें आपको नागवार हुई हो,तो माफ़ करना।
हुसैन–(अब्बास को छाती से लगाकर) अब्बास, मेरा खुदा मुझसे नाराज़ हो जाय,अगर मैं तुमसे ज़रा भी मलाल रखूं। तुमने मुझे जो सलाह दी,वह मेरी भलाई के लिए दी। इसमें मुझे ज़रा भी शक नहीं,मगर तुम इस मुग़ालते मे हो कि यज़ीद के दिल की आग मेरे बैयत ही से ठंडी हो जायगी। हालाँकि यजीद ने मुझे कत्ल करने का यह हीला निकाला है। अगर वह जानता कि मैं बैयत ले लूँगा,तो वह कोई और ही तदबीर सोचता।
अब्बास -अगर उसकी यह नीयत है,तो कलाम पाक की कसम, मैं आपके पसीने की जगह अपना खून बहा दूंगा,और आपसे आगे बढ़कर इतनी तलवारें चलाऊँगा कि मेरे दोनो हाथ कटकर गिर जायें।
जैनब-अब्बास,बातें न करो। (हुसैन से) भैया,मैं आपके पैरों पड़ती हूँ। आप यह इरादा तर्क कर दीजिए,और मदीने में रसूल की कब्र से लगे हुए ज़िन्दगी बसर कीजिए,और अपनी गरदन पर इस्लाम की तबाही का इलज़ाम न लीजिए।
हुसैन-जैनब,ऐसी बातों पर तुफ़ है। जब तक ज़मीन और पासमान कायम है,मैं यजीद की बैयत नहीं मंजूर कर सकता। क्या तुम समझती हो कि में ग़लती पर हूँ ?
जैनब- नहीं भैया,आप ग़लती पर नहीं हैं। अल्लाहताला अपने रसूल के बेटे को ग़लत रास्ते पर नहीं ले जा सकता,मगर आप जानते हैं कि जमाने का रंग बदला हुआ है। ऐसा न हो,लोग आपके खिलाफ उठ खड़े हों।