गुलाम-हुजूर,अमीर से जाकर जब मैंने कहा कि वह अभी आते हैं,तो वह चुप हो गये,लेकिन मरवान ने कहा कि वह कभी न आयेंगे,आपसे दावा कर रहे हैं। इस पर अमीर उनसे बहुत नाराज हुए,और कहा -हुसैन कौल के पक्के हैं,जो कहते हैं,उसे पूरा करते हैं।
हुसैन-वलीद शरीफ़ आदमी है । तुम जानो, हम अभी आते हैं।
अब्बास-आप जायेंगे ?
हुसैन-जब तक कोई सबब न हो,किसी की नीयत पर शुबहा करना मुनासिब नहीं।
अब्बास-भैया,मेरी जान आप पर फ़िदा हो। मुझे डर है कि कहीं वह आपको कैद न कर ले।
हुसैन–वलीद पर मुझे एतवार है। अबूसिफ़ियान की औलाद होने पर भी वह शरीफ और दीनदार है।
अब्बास-आप एतबार करें,लेकिन मैं आपको वहाँ जाने की हरगिज़ सलाह न दूँगा। इस सन्नाटे में अगर उसने कोई दगा की,तो कोई फ़र्याद भी न सुनेगा। आपको मालूम है कि मरवान कितना दगाबाज़ और हरामकार है। मैं उसके साये से भी भागता हूँ। जब तक आप मुझे इतमीनान न दिला दीजिएगा कि दुश्मन वहाँ आपका बाल बाँका न कर सकेगा,मैं आपका दामन न छोडूंगा।
हुसैन-अब्बास,तुम मेरी तरफ़ से बेफ़िक्र रहो। मुझे हक़ पर इतना यकीन है,और मुझमें हक़ की इतनी ताकत है कि वलीद तो क्या,यज़ीद की सारी फ़ौज भी मुझे कुछ नुकसान नहीं पहुँचा सकती। यकीन है कि मेरी एक आवाज पर हज़ारों खुदा के बन्दे और रसूल के नाम पर मिटनेवाले दौड़ पड़ेंगे। और अगर कोई मेरी आवाज़ न सुने, तो भी मेरे बाजुत्रों में इतना बल है कि मैं अकेले उनमें से एक सौ को जमीन पर सुला सकता हूँ। हैदर का बेटा ऐसे गीदड़ों से नहीं डर सकता । आओ,जरा नाना के कब्र की जियारत कर लें।