गुलाम -या अमीर,क्या हुक्म
मर०-जाकर हुसैन बिन अली को बुला ला। दौड़ते जाना,और कहना कि अमीर आपके इन्तजार में बैठे हैं।
हुसैन-मैं जब खयाल करता हूँ कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया,और इतनी शानदार खिलाफ़त कायम कर दी, तो मुझे यकीन हो जाता है कि उन पर खुदा का साया था। खुदा की मदद के बगैर कोई इन्सान यह काम न कर सकता था। सिकन्दर की बादशाहत उसके मरते ही मिट गयी, कैसर की बादशाहत उसकी ज़िन्दगी के बाद बहुत थोड़े दिनों तक कायम रही, उन पर खुदा का साया न था, वह अपनी हवस की धुन में कौमों को फतह करते हैं। नाना ने इस्लाम के लिए झंडा बलंद किया, इसी से वह कामयाब हुए।
अब्बास-इसमें किसको शक सकता है कि वह खुदा के भेजे हुए थे। खुदा की पनाह,जिस वक्त हज़रत ने इस्लाम की आवाज़ उठाई थी,इस मुल्क में अज्ञान का कितना गहरा अन्धकार छाया हुआ था। खुदा की ही आवाज थी,जो उनके दिल में बैठी हुई बोल रही थी,जो कानों में पड़ते ही दिलों में उतर जाती थी। दूसरे मज़हबवाले कहते हैं,इस्लाम ने,तलवार की ताकत से अपना प्रचार किया। काश,उन्होंने हज़रत की अवाज़ा सुनी होती! मेरा तो दावा है कि कुरान में एक आयत भी ऐसी नहीं है,जिसकी मंशा तलवार से इस्लाम को फैलाना हो।
हुसैन-मगर कितने अफसोस की बात है कि अभी से क़ौम ने उनकी नसीहतों को भूलना शुरू किया,और वह नापाक,जो उनकी मसनद पर बैठा हुआ है,आज खुले बन्दों शराब पीता है।