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कर्बला

यजीद-जुहाक, कसम है अल्लाह की; मैं इस विलम्ब को कभी क्षमा नहीं कर सकता । फोरन् क़ासिद भेजो, और वलाद को सख्त ताकीद लिखो कि वह हुसैन से मेरे नाम पर बैयत ले । अगर वह इनकार करें, तो उन्हें कत्ल कर दे । इसमें ज़रा भी देर न होनी चाहिए।

जुहाक-या मौला ! मेरी तो अर्ज़ है कि हुसैन कबूल भी कर लें तो भी उनका ज़िन्दा रहना अबूसिफियान के खानदान के लिए उतना ही घातक है, जितना किसी सर्प को मारकर उसके बच्चे को पालना । हुसैन जरूर दावा करेंगे।

यजीद-जुहाक, क्या तुम समझते हो कि हुसैन कभी मेरी बैयत कबूल कर सकता है ? यह मुहाल है, असम्भव है । हुसैन कभी मेरी बैयत न लेमा, चाहे उसकी बोटियाँ काट-काटकर कौवों को खिला दी जायें । अगर तकदीर पलट सकती है, अगर दरिया का बहाव पलट सकता है, अगर समय की गति रुक सकती है, तो हुसैन भी मेरे नाम पर बैयत ले सकता है । ममर बैयत ले चुकने के बाद मुमकिन है, तकदीर पलट जाय, दरिया का बहाव पलट जाय, समय की गति रुक जाय, पर हुसैन दावा नहीं कर सकता। उससे बैयत लेने का मतलब ही यही है कि उसे इस जहान से रुखसत कर दिया जाय । हुसैन ही मेरा दुश्मन है। मुझे और किसी का खौफ नहीं, मैं सारी दुनिया की फौजों से नहीं डरता, मैं डरता हूँ इसी निहत्थे हुसैन से । (प्याला भरकर पी जाता है) इसी हुसैन ने मेरी नींद, मेरा श्रीराम हराम कर रखा है। अबूसिफ़ियान की सन्तान हाशिम के बेटों के सामने सिर न झुकायेगी । खिलाफ़त को मुल्लाओं के हाथों में फिर न जाने देंगे। इन्होंने छोटे-बड़े की तमीज़ उठा दी । हरएक दहकान समझता है कि मैं खिलाफत की मसनद पर बैठने लायक हूँ, और अमीरों के दस्तरखान पर खाने का मुझे इक्क है। मेरे मरहूम बाप ने इस भ्रान्ति को बहुत कुछ मिटाया, और आज ख़लीफ़ा शान व शौकत में दुनिया के किसी ताजदार से शर्मिन्दा नहीं हो सकता । जूते सीनेवाले और रूखी रोटियाँ खाकर खुदा का शुक्रिया अदा करनेवाले स्खलीफ़ों के दिन गये ।

जहाक-खुदा न करे, वह दिन फिर आये ।