फिर सँभलकर उठते हैं, और तलवार चलाने लगते हैं।]
साद—शिमर, तुम्हारे सिपाही हुसैन के खेमों की तरफ जा रहे हैं, यह मुनासिब नहीं है।
शिमर—औरतों की हिफाजत करना हमारा काम नहीं है ।
हुसैन—(दाढ़ी से वन पोंछते हुए) साद, अगर तुम्हें दोन का खौफ.नहीं है, तो इन्सान ता हो, तुम्हारे भी तो बाल-बच्चे हैं । इन बदमाशों को मेरे खेमों में आने से क्यों नहीं रोकते ?
साद—आपके खेमों मे कोई न जा सकेगा, जब तक मैं ज़िन्दा हूँ ।
[खेमों के सामने जाकर खड़ा हो जाता है। ]
जैनब—( बाहर निकलकर ) क्यों साद ! हुसैन इस बेकसी से मारेजायँ, और तुम खड़े देखते रहो ? माल और दुनिया तुम्हें इतनी प्यारी है ?
[साद मुँह फेरकर रोने लगता है। ]
शिमर—तुफ है तुम पर ऐ जवानी ! एक प्यादा भी तुमसे नहीं मारा जाता ! तुम अब नाहक डरते हो । हुसैन में अब जान नहीं है, उनके हाथ नहीं उठते, पैर थर्रा रहे हैं, आँखें झपकी जाती हैं, फिर भी तुम उनको शेर समझ रहे हो।
हुसैन—(दिल में ) मालूम नहीं, मैंने कितने श्रादमियों को मारा, और अब भी मार सकता हूँ, पर हैं तो ये मेरे नाना ही की उम्मत, हैं तो सब मुसलमान, फिर इन्हें मारूँ, तो किस लिए ? अब कोन है, जिस के लिए ज़िन्दा रहूँ ? हाय, अकबर ! किससे कहें, जो खूने जिगर हमने पिया है, बाद ऐसे
पिसर के भी कहीं बाप जिया है । हाय अब्बास !
ग़श आता है हमें प्यास के मारे ,
उलफत हमें ले आयी है फिर पास तुम्हारे ।
इन सूखे हुए होठों से होठों को मिलाके ,
कुछ मशक में पानी हो, तो माई को पिला दो।
लेटे हुए हो रेत में क्यों मुँह को छिपाये ?
ग़ाफ़िल हो बिरादर तुम्हें किस तरह जगायें ?