[ फौज पर टूट पड़ते हैं। ]
शिमर---अरे नामर्दो, क्यों भागे जाते हो, कोई शेर नहीं है, जो सबको खा जायगा।
एक सिपाही---ज़रा सामने आकर देखो, तो मालूम हो। पीछे खड़े-खड़े क्या बहादुरी बघारते हो?
दूसरा---अरे, फिर इधर आ रहे हैं! ख़ुदा, बचाना।
तीसरा---उन पर तलवार चलाने को तो हाथ ही नहीं उठते। उनकी सूरत देखते ही कलेजा थर्रा जाता है।
चौथा---मैं तो हवा में तीर छोडता हूँ, कौन जाने, कहीं मेरे ही तीर से। शहीद हो जायँ तो आक़बत में कौन मुँह दिखाऊँगा।
पाँचवाँ---मैं भी हवा ही में छोड़ता हूँ।
शिमर---तुफ़् है तुम पर, डूब मरो नामर्दो घेरकर नेज़ों से क्यों नहीं वार करते?
साद---( शिमर से ) हमारे लिए उन्हें घेरना उतना ही मुश्किल है, जितना चूहों के लिए बिल्ली का। उनके सामने कौन है, जिसके क़दम रुकें? वह यों ही कल करते-करते खुद प्यास और थकान से बेदम हो जायँगे।
शिमर---( तीर चलाकर ) क्यों भागते हो? क्यों अपने मुँह में कालिख लगाते हो? दुनिया क्या कहेगी, इसकी भी तुम्हें शर्म नहीं?
कीस---सारी फ़ौज दहल गयी, उसको खड़ा रखना मुश्किल है।
शीस---अली के सिवा और किसी का यह दम-ख़म नहीं देखा।
शिमर---( तीर चलाकर ) सफ़ों को खूब फैला दी, ताकि दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ें।
हुसैन--–साद और शिमर, मैं तुम्हें फिर मौक़ा देता हूँ, मुझे लौट जाने दो, क्यों इन ग़रीबों की जान के दुश्मन हो रहे हो? तुम्हारा मैदान खाली हो गया। तुम्हीं सामने आ जाओ, जंग का फ़ैसला हो जाय।
साद---शिमर, जाते हो?
शिमर---क्यों न जाऊँगा, यहाँ जान देने नहीं आया हूँ।