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खून से लाल हो जायगी। मैं तुम लोगों का हृदय से अनुगृहीत हूँ कि तुमने मेरा साथ दिया । मैं अल्लाहताला से दुआ करता हूँ कि वह तुम्हें इस नेकी का सवाब दे । तुमसे अधिक वीरात्मा और पवित्र हृदयवाले मनुष्य संसार में न होंगे। मैं तुम लोगों को सहर्ष आज्ञा देता हूँ कि तुममें से जिसकी जहाँ इच्छा हो, चला जाय, मैं किसी को दबाना नहीं चाहता, न किसी को मजबूर करता हूँ। किन्तु इतना अनुरोध अवश्य करूँगा कि तुममें से प्रत्येक मनुष्य मेरे आत्मीय जनों में से एक-एक को अपने साथ ले ले । संभव है, खुदा तुम्हें तबाही से बचा ले, क्योंकि शत्रु मेरे रुधिर का प्यासा है। मुझे पा जाने पर उसको और किसी की तलाश न होगी।"

यह कहकर उन्होंने इसलिए चिराग बुझा दिया कि जानेवालों को संकोचवश वहाँ न रहना पड़े। कितना महान् , पवित्र और निस्वार्थ आत्मसमर्पण है!

किन्तु इस वाक्य का समाप्त होना था कि सब लोग चिल्ला उठे- "हम ऐसा नहीं कर सकते। खुदा वह दिन न दिखाये कि हम आपके बाद जीते रहें । हम दूसरों को क्या मुँह दिखायेंगे ? उनसे क्या यह कहेंगे कि हम अपने स्वामी,अपने बन्धु तथा अपने इष्ट-मित्र को शत्रुओं के बीच में छोड़ आये, उनके साथ एक भाला भी न चलाया, एक तलवार भी न चलायी! हम आपको अकेला छोड़कर कदापि नहीं जा सकते, हम अपने को, अपने धन को और अपने कुल को आपके चरणों पर न्योछावर कर देंगे।"

इस तरह ९ वीं तारीख , मोहर्रम की रात, आधी कटी। शेष रात्रि लोगों ने ईश्वर-प्रार्थना में काटी। हुसैन ने एक रात की मोहलत इसलिए नहीं ली थी कि समर की रही-सही तैयारी पूरी कर लें। प्रात:-काल तक सब लोग सिजदे करते और अपनी मुक्ति के लिए दुआएँ माँगते रहे।

साँचा:Rh'''(४)''' प्रभात हुआ-वह प्रभात, जिसकी संसार के इतिहास में उपमा