तुम्हारी तरफ़ से ऐसे बसबसे पैदा हुए। लो, मैं झगड़ा चुकाये देती हूँ। तुम दोनों खुदा का नाम लेकर साथ-साथ सिधारो, और दिखा दो कि तुम किसी से शब्बीर की उलफ़त में कम नहीं हो। मेरी और मेरे ख़ानदान की आबरू तुम्हारे हाथ है।
शेरों के लिए नंग है तलवार से डरना,
मैदान में तन-तनके सिपर सीनों को करना।
हर ज़ख़्म पै दम उलफ़ते-शब्बीर का भरना,
क़ुरबान गयी जीने से, बेहतर है यह मरना।
दुनिया में भला इज़्ज़ते-इस्लाम तो रह जाय,
तुम जीते रहो, या न रहो, नाम तो रह जाय।
नाना की तरह कौन बग़ा करता है देखूँ?
सिर कौन हज़ारों के जुदा करता है देखूँ?
हक़ कौन बहुत माँ का अदा करता है देखूँ!
एक-एक सफ़े-जंग में क्या करता है देखूँ?
दिखलाइयो हाथों से सफ़ाई का तमाशा,
मैं परदे से देखूँगी लड़ाई का तमाशा।
यह तो मैं जानती हूँ कि तुम नाम करोगे, पर कमसिन बहुत हो, इसलिए समझाती हूँ। जाओ, तुम्हें खुदा को सौंपा।
[ दोनो मैदान की तरफ़ जाकर लड़ते हैं, और जैनब परदे की आड़ से देखती है। शहरबानू का प्रवेश। ]
शहरबानू---है-है, बहन, यह तुमने क्या सितम किया?इन नन्हें-नन्हें बच्चों को रण में झोंक दिया। अभी तो अली अकबर बैठा ही हुआ है, अब्बास मौजूद ही है, ऐसी क्या जल्दी पड़ी थी?
जैनब---वे किसी के रोके रुकते थे? कल ही से हथियार सजे मुंतज़िर बैठे थे। रात-भर तलवारें साफ की गयी हैं। और, यहाँ आये ही किस लिए थे। ज़िन्दगी बाक़ी है, तो दोनो फिर आयेंगे। मर जाने का ग़म नहीं, अाखिर किस दिन काम आते। जिहाद में छोटे-बड़े की तमीज़ नहीं रहती। मैं रसूल पाक को कौन मुँह दिखाती?