जुल्म होते देखकर ज़ालिम का हाथ नहीं रोकता, वह भी खुदा की निगाहों में ज़ालिम का शरीक है।
नसीमा---मैं अपनी आँखें तुम पर सदक़े करूँ, मुझे अजाब व सबाब के मुख़मसों में मत डालो। सोचो, क्या यह सितम नहीं है कि हमारी ज़िन्दगी की बहार इतनी जल्द रुखसत हो जाय? अभी मेरे उरूसी कपड़े भी नहीं मैले हुए, हिना का रंग भी नहीं फीका पड़ा, तुम्हें मुझ पर ज़रा भी तर्स नहीं अाता? क्या ये आँखें रोने के लिए बनायी गयी हैं? क्या ये हाथ दिल को दबाने के लिए बनाये गये हैं? यही मेरी ज़िन्दगी का अंजाम है?
[ वहब के गले में हाथ डाल देती है। ]
वहब---( स्वगत ) खुदा, सँभालियो, अब तेरा ही भरोसा है। यह आशिक़ की दिल बहलानेवाली इल्तजा नहीं, माशूक़ का ईमान ग़ारत करने वाला तक़ाज़ा है।
[ साहसराय की सेना सामने से चली आ रही है। ]
नसीमा---अरे! यह फौज कहाँ से आ रही है? सिपाहियों का ऐसा अनोखा लिबास तो कहीं नहीं देखा। इनके माथों पर ये लाल-लाल बेल-बूटे कैसे बने हैं! क़सम है इन आँखों की, ऐसे सजीले, ऐसे हसीन जवान आज तक मेरी नज़र से नहीं गुजरे।
वहब---मैं जाकर पूछता हूँ, कौन लोग हैं। ( आगे बढ़कर एक सिपाही से पूछता है ) ऐ जवानो! तुम फ़रिश्ते हो या इन्सान? अरब में तो हमने ऐसे अादमी नहीं देखे। तुम्हारे चेहरों से जलाल बरस रहा है। इधर कहाँ जा रहे हो?
सिपाही---तुमने सुल्तान साहसराय का नाम सुना है? हम उन्हीं के सेवक हैं, और हज़रत हुसैन की सहायता करने जा रहे हैं, जो इस वक्त कर्बला के मैदान में घिरे हुए हैं। तुमने यज़ीद की बैयत ली है या नहीं?
वहब---मैं उस ज़ालिम की बैयत क्यों क़बूल करने लगा था।
सिपाही---तो आश्चर्य है तुम हज़रत हुसैन की फ़ौज में क्यों नहीं हो। तुम सूरत से मनचले जवान मालूम होते हो, फिर यह कायरता कैसी?
वहब---( शरमाते हुए ) हम वहीं जा रहे हैं।