कबीलों से इमदाद तलब करने का क़स्द कर रहे हैं। एक दिन की देर भी उन्हें मौक़े का बादशाह बना सकती है।
[ अब्बास खेमे से वापस आते हैं। ]
अब्बास---मैंने हज़रत हुसैन को तुम्हारा पैग़ाम दिया। हज़रत को इसका बेहद सदमा है कि उनकी कोई शर्त मंजूर नहीं की गयी। सुलह की इससे ज़्यादा कोशिश उनके इमकान में न थी। गोकि हम सब जंग के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने एक दिन की मुहलत माँगी है कि दुआ और नमाज़ में गुजारें। सुबह को हमें ख़ुदा का जो हुक्म होगा, उसकी तामील करेंगे।
साद---इसका जवाब मैं अपनी फ़ौज के दूसरे सरदारों से मशविरा करके दूँगा।
[ अब्बास अपने खेमों की तरफ़ जाते हैं, और हुर, हज्जाज, अशअस, क़ीस सब साद के पास आकर खड़े हो जाते हैं। ]
साद---शिमर, तुम्हारी इस मामले में क्या सलाह है?
शिमर---यह उनकी हीलेबाज़ी है। आइन्दा आप अमीर हैं, जो जी चाहे, करें।
साद---( दूसरे सरदारों से मुख़ातिब होकर ) हजरत हुसैन ने एक दिन की मुहलत की दरख़्वास्त की है, आप लोगों की क्या सलाह है?
शिमर---इसका आप लोग ख़याल रखिएगा कि यह मुहलत आफ़त के मीज़ान को पलट सकती है।
हुर---मुहलत के मंजूर करने में पसोपेश का कोई मौक़ा नहीं।
हज्जाज---हुसैन अगर काफ़िर होते, और मुहलत की दरख़्वास्त करते, तो भी उसको क़बूल करना लाज़िम था।
क़ीस---बहुत मुमकिन है, वह कल तक आपस में सलाह करके य़जीद की बैयत क़बूल कर लें, तो नाहक़ खूँरेजी क्यों हो।
शिमर---और अगर शाम तक बनी, असद और दूसरे क़बीले उनकी मदद के लिए आ जायँ, तो?
शीस---हज़रत हुसैन ने अभी तक किसी क़बीले से इमदाद नहीं तलब की है, वरना हम इतने इतमीनान से यहाँ न खड़े होते।