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कर्बला

बैयत क़बूल की है, उसे ऐसे हमलों से बचायें, जो हिर्स को पूरा करने के लिए दाद के नाम पर किये जाते हैं। चलो, फ़र्ज़ के मैदान में क़दम बढ़ाओ।

[ नक्क़ारे पर चोब पड़ती है, और पूरा लश्कर हुसैन के पड़ाव की तरफ़ बढ़ता है। साद आगे क़दम बढ़ाता हुआ हुसैन के खेमे के क़रीब पहुँच जाता है। ]

अब्बास---( हुसैन के खेमे से निकलकर ) साद! यह दग़ा! हम तुम्हारे जवाब का इन्तजार कर रहे हैं, और तुम हमारे ऊपर हमला कर रहे हो? क्या यही आईने-ज़ंग है?

साद---हज़रत, कलाम पाक को क़सम, मैं दग़ा के इरादे से नहीं आया। ( ज़ियाद का ख़त अब्बास के हाथ में देकर ) यह देखिए, और मेरे साथ इन्साफ़ कीजिए। मैं इस वक्त नाम के लिए फ़ौज का सरदार हूँ। अख़्तयार शिमर के हाथों में है।

अब्बास---( ख़त पढ़कर ) आखिर तुम दुनिया की तरफ़ झुके। याद रक्खा, खुदा को दरगाह में शिमर नहीं, तुम ख़तावार सभझे जाओगे।

साद---या हज़रत, यह जानता हूँ, पर ज़ियाद के ग़ुस्से का मुक़ाबला नहीं कर सकता। वह बिल्ली है, मैं चूहा हूँ; वह बाज़ है, मैं कबूतर हूँ। वह एक इशारे से मेरे ख़ानदान का निशान मिटा सकता है। अपनी हिफ़ाज़त की फिक्र ने मुझे मजबूर कर दिया है, मेरे दीन और ईमान को फ़ना कर दिया है।

अब्बास---खुलासा यह है कि तुम हमारा मुहासिरा करना चाहते हो। ठहरो, मैं जाकर भाई साहब को इत्तिला दे दूँ।

[ अब्बास हुसैन के खेमे की तरफ़ जाते हैं। ]

शिमर---( साद के पास आकर ) क्या अब कोई दूसरी चाल चलने की सोच रहे हैं?

साद---नहीं, हज़रत हुसैन को हमारी आमद और मंशा की इत्तिला देने गये है।

शिमर---यह मौक़े को हमारे हाथों से छीनने का हीला है। शायद