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कर्बला

शिकस्त है। ऐसी शिकस्त, जो आपको फिर पनपने न देगी। आग फूस में पड़कर उतनी खौफ़नाक नहीं हो सकती, जितने इस मुहासिरे से निकलकर हुसैन हो जायँगे। शेर किसी शिकार के पीछे दौड़ता हुआ बस्ती में आ गया है। उसे आप घेरकर मार सकते हैं, लेकिन एक बार वह फिर जंगल में पहुँच जाय, तो कौन है, जो उसके पंजों के सामने जाने की हिम्मत कर सके। कर्बला से निकलकर हुसैन वह दरिया होंगे, जो बाँध को तोड़कर बाहर निकल आया हो, और आपकी हालत उसी टूटे हुए बाँध की-सी होगी।

ज़ियाद---हाँ, इसमें तो कोई शक नहीं कि अगर वह निकलकर हिजाज और यमन चले जायँ, तो शायद ख़लीफ़ा यज़ीद की ख़िलाफ़त डगमगा जाय। मगर एक शर्त यह भी तो है कि उन्हें यज़ीद के पास जाने दिया जाय। इसमें हमें क्या उज्र हो सकता है?

शिमर---अगर बाज़ कबूतर के क़रीब पहुँच जाय, तो दुनिया की कोई फ़ौज उसे बाज़ के चंगुल से नहीं बचा सकती। हुसैन अपने बाप के बेटे हैं। ख़लीफ़ा उनकी दलीलों से पेश नहीं पा सकते। कोई अजब नहीं कि अपनी अक्ल के ज़ोर से अाज का क़ैदी कल का ख़लीफ़ा हो और ख़लीफ़ा को उलटे उसकी बैयत क़बूल करनी पड़े।

ज़ियाद---तुम्हारा यह ख़याल भी बहुत सही है। काश मुझे तुम्हारी वफ़ादारी का इतना इल्म पहले होता, तो तुम्हीं फ़ौज के सिपहसालार होते।

शिमर---काश साद ने मेरी बातें इतनी क़द्रदानी से सुनी होतीं, तो मुझे यहाँ आने और आपको तकलीफ़ देने की ज़रूरत ही न पड़ती।

ज़ियाद---तुम सुबह चले जाओ, और साद से कहो कि फ़ौरन् जंग शुरू करे।

शिमर---हुजूर को जो हुक्म देना हो, खत के जरिए दें। मातहत के ज़रिए उसके अफ़सर को हुक्म देना अफ़सर को मातहत के खून का प्यासा बनाना है।

ज़ियाद---बेहतर, मैं खत ही लिख देता हूँ।

[ ज़ियाद खत लिखकर शिमर को देता है। ]