साद---यह मेरा जाती मामला है, जैसा मुनासिब समझूँगा, करूँगा।
[ क़ासिद को बुलाकर ख़त का जवाब देता है। ]
शिमर---रात का वक्त लिखा है न?
साद---इतना तो तुम्हें ख़ुद समझ लेना चाहिए था।
शिमर---( जाने के लिए खड़ा होकर ) मेरी बात का ज़रूर ख़याल रखिएगा। ( दिल में ) इसके अंदाज़ से मालूम होता है कि हुसैन की बातों में आ जायगा। ज़ियाद के पास खुद जाकर यह क़िस्सा कहूँ।
साद---( दिल में ) ख़ुदा तुझसे समझे ज़ालिम! तू ज़ियाद से भी दो अंगुल बढ़ा हुआ है। शायद मेरा यह क़यास ग़लत नहीं है कि तू ही ज़ियाद को यहाँ के हालात की इत्तिला देता है। हुसैन दग़ा करेंगे! हुसैन दग़ा करनेवालों में नहीं, दग़ा का शिकार होनेवालों में हैं।
[ उठकर अन्दर चला जाता है। ]
[ हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त। ]
सुगरा---अम्मा, बड़ी प्यास लगी है।
अली असग़र---पानी, बुआ, पानी।
हफ़ां---कुरबान गयी, बेटे, कितना पानी पियोगे? अभी लायी।
[ मशकों को जाकर देखती है, और छाती पीटती लौटती है। ]
ऐ क़ुरबान गयी बीबी, कहीं एक बूँद पानी नहीं। बच्चों को क्या पिलाऊँ!
जैनब---क्या बिलकुल पानी ग़ायब हो गया?
हफ़ां---ऐ क़ुरबान गयी बीबी, सारे मटके और मशकें खाली पड़ी हुई है।
जैनब---ग़ज़ब हो गया। नदी तो बन्द ही थी, अब ज़ालिम कुएँ भी नहीं खोदने देते।