कोई तुमसे जुदा दर्दे-जुदाई लेके बैठा है,
वह अपने घर में अब अपनी कमाई लेके बैठा है।
जिगर, दिल, जान, ईमाँ अब कहाँ तक नाम ले कोई,
वह ज़ालिम सैकड़ों चीजें पराई लेके बैठा है।
ख़ुदा ही है मेरी तोबा का, जब साक़ी कहे मुझसे---
अरे, पी भी, कहाँ की पारसाई लेके बैठा है।
तेरे काटे शबे-ग़म मेरी बरसों से नहीं कटती ,
तो फिर तू ऐ खुदा नाहक खुदाई लेके बैठा है।
कहूँ कुछ मैं, तो वह मुँह फेरकर कहता है औरों से-
खुदा जाने, यह कब की आशनाई लेके बैठा है।
अमल कुछ चल गया है शौक़ पर जाहिद का ऐ यारो,
कि मस्जिद में पुरानी एक चटाई लेके बैठा है।
[ केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिए पहरा बैठा दिया है। प्रातःकाल का समय। शिमर और साद ख़ेमे में बैठे हुए हैं। ]
साद---मेरा दिल अभी तक हुसैन से जंग करने को तैयार नहीं होता। चाहता हूँ, किसी तरीक़े से सुलह हो जाय, मगर तीन क़ासिदों में से एक भी मेरे ख़त का जवाब न ला सका। एक तो हज़रत हुसैन के पास जा ही न सका, दूसरा शर्म के मारे रास्ते ही से किसी तरफ़ खिसक गया, और तीसरे ने जाकर हुसैन की बैयत अख़्तयार कर ली। अब और क़ासिदों को भेजते हुए डरता हूँ कि इनका भी वही हाल न हो।