ज़ियाद---तो मैं मुंशी को हुक्म देता हूँ कि तुम्हारे नाम फ़रमान जारी कर दे, और तुम वहाँ जाकर काम सँभालो।
साद---ग़ुलाम हमेशा आपका मशकूर रहेगा।
ज़ियाद---मुझे यकीन है, तुम उतने ही कारगुज़ार और वफ़ादार साबित होगे, जैसी मुझे तुम्हारी ज़ात से उम्मीद है।
[ मीर मुंशी को बुलाता है, वह साद के नाम का फ़रमान लिखता है। ]
साद---( फरमान लेकर ) तो मैं कल चला जाऊँ?
ज़ियाद---नहीं-नहीं, इतनी जल्द नहीं। वहाँ जाने के पहले तुम्हें अपनी वफ़ादारी का सबूत देना पड़ेगा। इतना ऊँचा मंसब उसी को दिया जा सकता है, जो हमारा एतबार हासिल कर सके। यह किसी बड़ी खिदमत का सिला होगा।
साद---मैं हरएक ख़िदमत के लिए दिलोजान से हाजिर हूँ। जिस मुहिम को और कोई अंजाम न दे सकता हो, उस पर मुझे भेज दीजिए। ख़ुदा ने चाहा, तो कामयाब होकर आऊँगा।
ज़ियाद---बेशक-बेशक, मुझे तुम्हारी ज़ात से ऐसी ही उम्मीद है। तुम्हें मालूम है, हुसैन बिन अली कूफ़े की तरफ़ आ रहे हैं। हमको उनकी तरफ से बहुत अंदेशा है। तुमको उनसे जंग करने के लिए जाना होगा। उधर से हमें बेफ़िक्र करके फिर 'रै' की हुकूमत पर जाना।
साद---या अमीर, आप मुझे इस मुहिम पर जाने से मुआफ़ रखें, इसके सिवा आप जो हुक्म देंगे, उसकी तामील में मुझे ज़रा भी उज्र न होगा।
ज़ियाद--क्यों, हुसैन से जंग करने में तुम्हें क्या उज्र है?
साद---आपका गुलाम हूँ, लेकिन हुसैन के मुकाबले से मुझे मुआफ़ रखें, तो आपका हमेशा एहसान मानूँगा।
ज़ियाद---बेहतर है, तुम्हारी जगह किसी और को भेजूँगा। फ़रमान वापस देकर घर बैठ जाओ। 'रै' का इलाक़ा उसी आदमी का हक़ है, जो इस मुहिम को अंजाम दे। मौत के बग़ैर जन्नत नसीब नहीं हो सकती। जो