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कर्बला

हुसैन---बेटा, तुमने दिल खुश कर दिया। खुदा तुमको वह सबसे बड़ा इनाम दे, जो बाप बेटे को दे सकता है।

[ जहीर, हबीब, अब्दुल्ला, कलबी और उसकी स्त्री का प्रवेश। ]

अली०---कौन इधर से जा रहा है?

ज़हीर---हम मुसाफ़िर हैं। ये ख़ेमे क्या हज़रत हुसैन के हैं?

अली०---हाँ।

ज़हीर---खुदा का शुक्र है कि हम मंज़िल मक़सूद पर पहुँच गये। हम उन्हीं की ज़ियारत के लिए कूफ़ा से आ रहे हैं।

हुसैन---जिसके लिए आप कूफ़ा से आ रहे हैं, वह खुद आपसे मिलने के लिए कूफ़ा जा रहा है। मैं ही हुसैन बिन अली हूँ।

जहीर---हमारे ज़हे-नसीब कि आपकी ज़ियारत हुई। हम सब-के-सब अापके ग़ुलाम हैं। कूफ़ा में इस वक्त दर व दीवार आपके दुश्मन हो रहे हैं। आप उधर क़स्द न फ़रमायें। हम इसी लिए चले आये हैं कि वहाँ रहकर अापकी कुछ ख़िदमत नहीं कर सकते। हमने हज़रत मुस्लिम के क़त्ल का खूनी नज़ारा देखा है, हानी को क़त्ल होते देखा है, और ग़रीब तौआ की बोटियाँ कटते देखी हैं। जो लोग आपकी दोस्ती का दम भरते थे, वे अाज ज़ियाद के दाहने बाजू बने हुए है।

हुसैन---ख़ुदा उन्हें नेक रास्ते पर लाये। तक़दीर मुझे कूफ़ा लिये जाती है, और अब कोई ताक़त मुझे वहाँ जाने से रोक नहीं सकती। आप लोग चलकर आराम फ़रमायें। कल का दिन मुबारक होगा, क्योंकि मैं उस मुक़ाम पर पहुँच जाऊँगा, जहाँ शहादत मेरे इन्तज़ार में खड़ी है।

[ सब जाते हैं।‌ ]


छठा दृश्य

[ कर्बला का मैदान। एक तरफ़ केरात नदी लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं। ]