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कर्बला

आपके मुख़ारविंद पर भी मुझे उसी महर्षि के तेज का प्रतिबिंब दिखायी देता है। आप उनके आत्मीय हैं?

हुसैन---जी हाँ, उनका नेवासा हूँ। मगर अापने नाना को तो देखा ही नहीं, फिर आपको कैसे मालूम हुआ कि मेरी सूरत उनसे मिलती है?

योगी---( हँसकर ) भगवन्! मैंने उनका स्थूल शरीर नहीं देखा, पर उनके अात्मशरीर का दर्शन किया है। आत्मा द्वारा उनकी पवित्र वार्ता सुनी है। मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ कि आपमें वही पवित्र आत्मा अवतरित हुई है। आज्ञा दीजिए, आपके चरण रज से अपने मस्तक को पवित्र करूँ।

हुसैन---( पैरों को हटाकर ) नहीं-नहीं, मैं इन्सान हूँ, और रसूल पाक की हिदायत है कि इन्सान को इन्सान की इबादत वाजिब नहीं।

योगी---धन्य है! मनुष्य के ब्रह्मत्व का कितना उच्च आदर्श है! वह ज्ञान-ज्योति, जो इस देश से उद्भासित हुई है, एक दिन समस्त भूमंडल को आलोकित करेगी, और देश-देशांतरों में सत्य और न्याय का मुख उज्ज्वल करेगी। हाँ, इस महर्षि की सन्तान न्याय-गौरव का पालन करेगी। अब मुझे आज्ञा दीजिए, आपके दर्शनों से कृतार्थ हो गया।

[ योगी चला जाता है। ]

हुसैन---अब मुझे अपने मरने का ग़म नहीं रहा। मेरे नाना की उम्मत हक़ और इन्साफ़ की हिमायत करेगी। शायद इसी लिए रसूल ने अपनी औलाद को हक़ पर क़ुरबान करने का फ़ैसला किया है। हुर, तुमने इस फ़क़ीर की पेशगोई सुनी?

हुर---या हज़रत, अापका रुतबा अाज जैसा समझा है, ऐसा कभी न समझा था। हुजूर रसूल पाक से मेरे हक़ में दुआ करें कि मुझ रूहस्याह के गुनाह मुआफ करे।

[ चला जाता है। ]

हुसैन--–अब्बास, अब हमें कूफ़ावालों को अपने पहुँचने की इत्तिला देनी चाहिए।

अब्बास-वजा है।