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कर्बला

जंग करना मेरे लिए कितनी शर्म की बात है। यह मुझसे न होगा। मैं जानता हूँ, यज़ाद मेरे ख़ून का प्यासा हो जायगा, मेरी जागीरें छीन ली जायँगी, मेरे लड़के रोटियों के मुहूताज़ हो जायँगे, मगर दुनिया खोकर रसूल की निगाह का हक़दार हो जाऊँगा। मुझे न मालूम था कि यज़ीद की बैयत लेकर मैं अपनी आक़बत बिगाड़ने पर मजबूर किया जाऊँगा। अब यह जान हज़रत हुसैन पर निसार है। जो होना है, हो। यज़ीद की खिलाफ़त पर कोई हक़ नहीं। मैंने उसकी बैयत लेने में ख़ास ग़लती की। उसके हुक्म की पाबन्दा मुझ पर फ़र्ज़ नहीं। ख़ुदा के दरबार में मै इसके लिए गुनहगार न ठहरूँगा।

[ आगे बढ़ता है। ]

अब्बास---कौन है? ख़बरदार, एक क़दम आगे न बढ़े, वरना लाश ज़मीन पर होगी।

हुर---या हज़रत, आपका ग़ुलाम हुर हूँ। हज़रत हुसैन की खिदमत मे कुछ अर्ज़ करना चाहता हूँ।

अब्बास---इस वक्त वह आराम फ़रमा रहे हैं।

हुर---मेरा उनसे इसी वक्त मिलना ज़रूरी है।

अब्बास---( दिल में ) दग़ा का अन्देशा तो नहीं मालूम होता। मैं भी इसके साथ चलता हूँ। ज़रा भी हाथ-पाँव हिलाया कि सिर उड़ा दूँगा। (प्रकट) अच्छा, आओ।

[ अब्बास ख़ेमे से बाहर हुसैन को बुला लाते हैं। ]

हुर---या हज़रत, मुआफ़ कीजिएगा। मैंने आपको नावक्त तक़लीफ़ दी। मैं यह अर्ज़ करने आया हूँ कि आप कूफ़ा की तरफ न जायँ। रात का वक्त है, मेरी फ़ौज सो रही है, आप किसी दूसरी तरफ़ चले जायँ। मेरी यह अर्ज़ क़बूल कीजिए।

हुसैन--–हुर, यह अपनी जान बचाने का मौक़ा नहीं है, इस्लाम की आबरू को कायम रखने का सवाल है।

हुसैन---आप यमन की तरफ चले जायँ, तो वहाँ आपको काफ़ी मदद मिलेगी। मैंने सुना है, सुलेमान और मुख़तार वहाँ आपकी मदद के लिए फ़ौज जमा कर रहे हैं।