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कर्बला

हुर---या हज़रत, आपके पीछे खड़े होकर नमाज़ अदा करने का सबाब न छोड़ेंगा, चाहे मेरी फ़ौज मुझसे जुदा क्यों न हो जाय।


तीसरा दृश्य

[ सन्ध्या का समय---नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है। ]
दफ़्न करने ले चले थे जब मेरे घर से मुझे,
काश तुम भी झाँक लेते रौज़ने घर से मुझे।
साँस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख़सत हो चुका,
तुम अब आये हो उठाने मेरे बिस्तर से मुझे!
क्यों उठाता है मुझे मेरी तमन्ना को निकाल,
तेरे दर तक खींच लायी थी यही घर से मुझे।
हिज्र की शब कुछ यही मूनिस था मेरा ऐ कज़ा-
एक ज़रा रो लेने दे मिल-मिल के बिस्तर से मुझे।
याद है तस्कीन अब तक वह ज़माना याद है,
जब छुड़ाया था फ़लक ने मेरे दिलवर से मुझे।
[ वहब का प्रवेश---नसीमा चुप हो जाती है। ]

वहब---ख़ामोश क्यों हो गयीं? यही सुनकर मैं आया था।

नसीमा---मेरा गाना मेरा ख़याल है, तनहाई का मूनिस। अपना दर्द क्यों सुनाऊँ, जब कोई सुनना न चाहे।

वहब---नसीमा, शिक़वे करने का हक़ मेरा है, तुम इसे ज़बरदस्ती छीन लेती हो।

नसीमा---तुम मेरे हो, तुम्हारा सब-कुछ मेरा है, पर मुझे इसका यक़ीन नहीं आता। मुझे हरदम यही अन्देशा रहता है कि तुम मुझे भूल जाओगे, तुम्हारा दिल मुझसे बेज़ार हो जायगा, मुझसे बेएतनाई करने लगोगे। यह ख़याल दिल से नहीं निकलता। बहुत चाहती हूँ कि निकल जाय, पर वह