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कर्बला

आया हूँ।( एक पत्थर सिर पर आता है ) ऐ गुमराहो! क्या तुमने इस्लाम से मुँह फेरकर शराफ़त और इन्सानियत से भी मुँह फेर लिया। क्या तुम्हें शर्म नहीं आती कि तुम अपने रसूल पाक के अज़ीज़ पर पत्थर फेक रहे हो। हमारे साथ तुम्हारा यह कमीनापन!

[ तलवार लेकर टूट पड़ते हैं। ]

कूचे में रास्ती के हम अब गदा हुए हैं,
क्या ख़ौफ़ मौत का है, हक़ पर फ़िदा हुए हैं।
ईमाँ है अपना मुस्लिम मकरोदग़ा से नफ़रत,
दुनिया से फेरकर मुँह नक़शे-वफ़ा हुए हैं।
क्या उनपे हाथ उठाऊँ जो मौत से हैं ख़ायफ़,
जो राहे-हक़ से फिरकर सरफ़े-दग़ा हुए हैं।
दुनिया में आके इक दिन हर शख्स को है मरना,
जन्नत है उनकी, जो याँ वक-़ेज़फ़ा हुए हैं।

क़ीस---कलामे पाक की क़सम, हम आपसे फ़रेब न करेंगे। अगर हम आपसे झूठ बोलें, तो हमारी नजात न हो।

मु॰---वल्लाह! मुझे ज़िन्दा गिरफ्तार करके ज़ियाद के तानों का निशाना न बना सकेगा।

क़ीस---( आहिस्ते से ) यह शेर इस तरह काबू में न आयगा। इसका सामना करना मौत का लुक़मा बनना है। यहाँ गहरा गड्ढा खोदो। जब तक वह औरों को गिराता हुअा अाये, तब तक गड्ढा तैयार हो जाना चाहिए। यहाँ अँधेरा है, वह जोश में इधर आते ही गिर जायगा।

एक सि॰---ज़ियाद पर लानत हो, जिसने हमें शेर से लड़ने के लिए भेजा। या हज़रत, रहम, रहम!

सि॰---ख़ुदा खैर करे। क्या जानता था, यहाँ मौत का सामना करना पड़ेगा। बाल-बच्चों की खबर लेनेवाला कोई नहीं।

[ मुस्लिम गड्ढे में गिर पड़ते हैं। ]

मु॰---जालिमो, आखिर तुमने दग़ा की!