यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
कर्बला

ज़ियाद---तेरा अाक़ा कहाँ रहता है?

क़ासिद---अपने घर में।

ज़ियाद---उसका घर कहाँ है?

सिद---जहाँ उसके बुज़ुर्गों ने बनवाया था।

ज़ियाद---क़सम खुदा की, तू एक ही शैतान है। मैं जानता हूँ कि तुझ-आदमियो के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। ( जल्लाद से ) इसे ले जाकर क़त्ल कर दे।

मुअ०---हुज़ूर, मैं खूब पहचानता हूँ कि यह साँड़नी हानी की है।

ज़ियाद---अगर तू मुस्लिम का सुराग़ लगा दे, तो तुझे आज़ाद कर दूँ, और पाँच हज़ार दीनार इनाम दूँ।

मु०---( दिल में ) ये बड़े-बड़े हाकिम बड़ी-बड़ी थैलियाँ हड़प करने ही के लिए हैं। अक्ल ख़ाक नहीं होती। जब साँड़नी मौजूद है, तो उसके मालिक का पता लगाना क्या मुश्किल है? अाज किसी भले आदमी का मुँह देखा था। चलकर साँड़नी पर बैठ जाता हूँ, और उसकी नकेल छोड़ देता हूँ। अाप ही अपने घर पहुँच जायगी। वहीं मुस्लिम का पता लग जायगा।

[ चला जाता है। ]

ज़ियाद---( दिल में ) अगर यह साँड़नी हानी की है, तो साफ़ ज़ाहिर है कि वह भी इस साज़िश में शरीक है। मैं अब तक उसे अपना दोस्त समझता था। ख़ुदा, कुछ नहीं मालूम होता कि कौन मेरा दोस्त है, और कौन दुश्मन। मैं अभी उसके घर गया था। अगर शरीक भी हानी का मददगार है, तो यही कहना पड़ेगा कि दुनिया में किसी पर भी एतबार नहीं किया जा सकता।



ग्यारहवाँ दृश्य

[ १० बजे रात का समय। ज़ियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान मुख़तार और हानी चले आ रहे हैं। ]

सुले०---ज़ियाद के बर्ताव में अब कितना फ़र्क़ नज़र आता है।