की कृपा-दृष्टि होगी; परन्तु जो लोग हुसैन के नाम पर बैयत लेंगे, उनके साथ किसी तरह की रियायत न की जायगी। हम उसे सूली पर चढ़ा देंगे, और उसकी जागीर या वृत्ति जब्त कर लेंगे।" इस घोषणा ने यथेष्ट प्रभाव डाला । कूफ़ावालों के हृदय काँप उठे । जियाद को वे भली-भाँति जानते थे। उस दिन जब मुस्लिम भी मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हुए, तो किसी ने उनका साथ न दिया। जिन लोगों ने पहले हुसैन की सेवा में आवेदन-पत्र भेजा था, उनका कहीं पता न था। सभी के साहस छूट गये थे। मुस्लिम ने एक बार कुछ लोगों की सहायता से जियाद को घेर लिया। किन्तु ज़ियाद ने अपने एक विश्वासपात्र सेवक के मकान की छत पर चढ़कर लोगों को यह संदेसा दिया कि “जो लोग यजीद की मदद करेंगे, उन्हें जागीर दी जायगी; और जो लोग बग़ावत करेंगे, उन्हें ऐसा दंड दिया जायगा कि कोई उनके नाम को रोनेवाला भी न रहेगा।” नेतागण यह धमकी सुनकर दहल उठे, और मुस्लिम को छोड़-छोड़कर दस-दस, बीस-बीस आदमी बिदा होने लगे । यहाँ तक कि मुस्लिम वहाँ अकेला रह गया। विवश हो उसने एक वृद्धा के घर में शरण लेकर अपनी जान बचायी । दूसरे दिन जब ओबैदुल्लाह को मालूम हुआ कि मुस्लिम अमुक वृद्धा के घर में छिपा है, तो उसने ३०० सिपाहियों को उसे गिरफ्तार करने के लिये भेजा। असहाय मुस्लिम ने तलवार खींच ली, और शत्रुओं पर टूट पड़े। पर वह अकेले कर ही क्या सकते थे। थोड़ी देर में जख्मी होकर गिर पड़े। उस समय सूबेदार से उनकी जो बातें हुईं, उनसे विदित होता है कि वह कैसे वीर पुरुष थे। गवर्नर उनकी भय-शून्य बातों से और भी गरम हो गया। उसने उन्हें तुरन्त क़त्ल करा दिया।
हुसैन, अपने पूज्य पिता की भाँति, साधुओं का-सा सरल जीवन व्यतीत करने के लिए बनाये गये थे। कोई चतुर मनुष्य होता, तो उस समय दुर्गम पहाड़ियों में जा छिपना, और यमन के प्राकृतिक