( २ ) प्रवाहित हुआ था। कविता या रचना कवि-हृदय का प्रति- विव मात्र है। उसमें वह अपने मुख्य रूप में प्रतिविवित रहता है। इसलिये कविता का यथातथ्य मर्म समझने के लिये रचयिता के हृदय-संगठन का इतिहास-पाठ वहुत उपयोगी होता है। हृदय-संगठन का इतिहास जीवन-घटना से संबद्ध है अतएव यह बहुत उपयुक्त होगा, यदि में इन समस्त वातों का निरूपण इस ग्रंथ के आदि में किसी प्रबंध द्वारा करूँ। निदान अव में इसी कार्य में प्रवृत्त होता हूँ। जन्म और वाल्य-काल रेवरंड जी. एच. वेस्कट, एम. ए., वर्तमान प्रिंसिपल कानपुर क्रिश्चियन कालेज ने "कवीर ऐंड दी कबीरपंथ" नाम की एक पुस्तक अँगरेजी भाषा में लिखी है। यह पुस्तक बड़ी योग्यता से लिखी गई है और अभिज्ञताओं एवं विवेचनाओं का आगार है। उक्त सजन इस ग्रंथ के पृष्ठ ३ में लिखते हैं-"यदि हम केवल उन्हीं कहानियों पर ध्यान देते हैं, जिनमें ऐतिहासिक सचाई है, तो हमपर ये सब बातें स्पष्टतया प्रकट नहीं होती कि कबीर का जन्मस्थान कहाँ है, वे किस समय उत्पन्न हुए, उनका नाम क्या था, बचपन में वे कौन धर्मावलंबी थे, किस दशा में थे, उनका विवाह हुआ था या वे अविवाहित थे और कितने समय तक कहाँ कहाँ रहे। यह सत्य है कि उनके नाम पर बहुत सी कथा- वार्ताण कही जाती हैं । परंतु चाहे वे कितनी ही मन बहलाने- वाली क्यों न हों, उन लोगों की आवश्यकताओं को कदापि पूरा नहीं कर सकतीं, जो वास्तविक समाचार जानने के इच्छुक हैं।" श्रीयुत बाबू मन्मथनाथ दत्त, एम. ए. कलकत्ता-निवासी
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/८
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