पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/७१

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देखो गई। उन्होंने उनके विरुद्ध अपना प्रवल स्वर ऊँचा किया; बड़े साहस के साथ केवल अपने आत्मवल के सहारे उनका सामना किया। उनका सत्य व्यवहार, उनका दृढ़ विचार ही इस मार्ग में उनका सच्चा सहायक था। उनको किसी प्राचीन धर्म ग्रंथ की सहायता अभिप्रेत थी ही नहीं। फिर वे क्या किसी धर्म ग्रंथ का मुख देखते ? मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। जो इन बातों से कुछ संबंध नहीं रखता, वह ठीक वातें कहेगा, वे चाहे किसी को भली लगे या दुरी, उसको इसकी चिंता ही क्या ? धर्मध्वजियों को जो कुछ कहा जाय, सब ठीक है। वे इस योग्य नहीं कि उनसे शिष्टता के साथ वर्ताव किया जाय । अनेक धार्मिक और सामाजिक कुसंस्कार सीधी सादी और प्यार की बातों से दूर नहीं होते। उनके लिये जिह्वा को तलवार वनाना पड़ता है: क्योंकि विना ऐसा किये कुसंस्कारों का संहार नहीं होता। ये ऐसी प्रत्यक्ष वाते हैं, जो सर्वसम्मत हैं। इसके लिये किसी धर्मग्रंथ का आश्रय अपेक्षित नहीं ! ये बड़ी ही प्यारी और श्रुति मनोहर वाते हैं। प्रायः धर्म- संस्कारकों के कार्यो का अनुमोदन करने के लिये ऐसी ही वाते कही जाती हैं। मैं भी इनको उचित सीमा तक मानता हूँ, परंतु सर्वाश में नहीं। जो श्रात्म-निर्भर-शील संस्कारक या महात्मा है, उनका पद वहुत ऊँचा है। परंतु उनको यह पद उत्पन्न होते ही नहीं प्राप्त हो जाता। माता, पिता, महात्मा जनों और विद्वानों के संसर्ग, नाना शास्त्रों के अवलोकन और सांसारिक घटनाओं के घात प्रतिघात के निरीक्षण से शनैः शनैः प्राप्त होता है। धर्म की लहरें संसार में व्याप्त हैं। परंतु वे किसी आधार से हृदय में प्रवेश करती हैं। प्रकृति