पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/६५

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उन्होंने स्वतंत्र पथ अवश्य ग्रहण किया। उनकी इस स्वतंत्रता से मुग्ध होकर रहनुमायाने हिंद' के रचयिता कहते हैं- ___उनको खुदा का फरजंद कहना वजा है। वह एक कोम या मजहब न रखते थे। उनका घर दुनिया, उनके भाई-बंद बनीनवा इंसान, और उनका बाप खालिके-अर्ज वो समाँ था।" -पृष्ठ २२९ परंतु हम देखते हैं कि वे ही 'रहनुमायाने हिंद' के विद्वान् रचयिता हिंदू मजहब के विषय में यह कथन करते हैं- ___ *अगर कोई शख्स हिंदू मजहब को जानना, पढ़ना या हासिल करना चाहे, तो वह बड़े बड़े रहनुमा, रिशी और संतों की तलकीन गौर से पढ़े। यह बुजुर्ग लोग खुदा के अवतार थे, उनके अकवाल वेद सुकद्दस हैं, जो आसमानी वही और रव्यानी इलहाम हैं, जो खुदा ताला ने अपनी इनायत से इंसान को इनायत फरमाये हैं।" -पृष्ठ २८ ___ यह एक जात या फिरके का मजहब नहीं है, जैसा कि अवामुन्नास का अकीदा है, बल्कि कुल वनीनवा इंसान के लिये वजा किया गया है। जिस वक्त दुखानी जहाज, रेल, तार, तिजारत और फतूहात से कुल दुनिया मिल जुलकर एक हो जायगी, एक और रहनुमा पैदा होकर जाहिर करेगा कि हिंदू मजहब तमाम दुनिया के इंसानों के लिये है।" -पृष्ट २८ अव आप देखिये, वे जैसे कवीर साहब को किसी क़ौम या. मजहब का नहीं कहते, उसी प्रकार हिंदू धर्म को किसी जाति या फिरके का नहीं बतलाते। जैसे वे वनीनवा इंसान को कवीर साहव का भाई बंद बतलाते हैं, वैसे ही हिंदू मज- हव को वनीनवा इंसान का कहते हैं। जैसे वे कवीर साहब का घर दुनिया सिद्ध करते हैं, वैसे ही हिंदू मजहब को