मजहब का ज्ञान तक नहीं था, तब यह बात कैसे स्वीकार की जा सकती है कि उनके पंथ पर ईसाई मत का भी कुछ प्रभाव • पड़ा है। भारत के परम प्रसिद्ध चौद्ध धर्म से भी वे कुछ अभिज्ञ नहीं थे क्योंकि वे इस धर्म का भी किसी स्थान पर कुछ वर्णन नहीं करते हैं । वे जव चर्चा करते हैं, तव दो राहों की चर्चा करते हैं और कहते हैं कि कर्ता ने यही दो राहें चलाई। यदि वे कोई तीसरी राह जानते, तो उसका नाम भी अवश्य लिखते । इसके अतिरिक्त वे और अवसरों पर भी इन्हीं दो राहों को सामने रखकर अपने चित्त का उद्गार निकालते हैं । अन्य की ओर उनकी दृष्टि भी नहीं जाती। निम्नलिखित वचन इसके प्रमाण हैं- “करता किरतिम वाजी लाई । हिन्दू तुरुक दुइ राह चलाई"। -कवीर वीजक, पृष्ट ३९१ "सन्तो राह दोउ हम डीठा। हिंदू तुरुक हटा नहिं मानै स्वाद सवन को मीठा" |--कवीर वीजक, पृष्ट २१० '"अरे इन दोहुन राह न पाई । हिंदुअन की हिंदुआई देखी तुरकन की तुरकाई । कहें कीर सुनो भाई साधो कौन राह है जाई ||--कवीर शब्दावली, प्रथम भाग, पृष्ट ४८ ___ अव रहे हिंदू और मुसलमान धर्म। पहले मैं यह देखुंगा कि कवीर पंथ, वैष्णवधर्म की एक शाखा मात्र है और उसी की विचार परंपरा और विशाल हिंदू धर्म के सिद्धांत उसमें ओतप्रोत हैं, या क्या ? तदुपरांत मुसल्मान धर्म के प्रभाव की भी मीमांसा करूँगा। .. १९०८ ईसवी में धर्मेतिहास की सार्वजनिक सभा में श्रीमान् ग्रियर्सन साहब ने 'भागवत धर्म' पर एक प्रबंध पढ़ा था। उसका सारमर्म 'प्रवासी' नामक बँगला पत्र के दशम
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