इसके बाराम, गोविदारवाद का से वे अवताचार प्रयोग उनको और व्यापक मानके विरोधमूलनता हूँ। (४८. ). इसके अतिरिक्त उनके पद्यों में सैकड़ों स्थानों पर रघुनाथ,. रघुराय, राजाराम, गोविंद, मुरारि इत्यादि अवतार-संबंधी नामों का प्रयोग उनको अवतारवाद का प्रतिपादक बतलाता है। किंतु जिस दृढ़ता और व्यापक भाव से वे अवतारवाद का विरोध करते हैं, उसे देखकर मैं उनके विरोधमूलक विचार को ही मुख्य और दूसरे विचार को गौण मानता हूँ। एक और प्रकार से समाधान किया जाता है। वह यह कि जब वे परमात्मा का निरूपण करने लगते हैं, तब उस आवेश में अवतारों को साधारण मनुष्य सा वर्णन कर जाते हैं; किंतु जव स्वयं प्रेम में भरकर अवतारों के सामने आते हैं तब उनमें ईश्वर भाव ही प्रकट करते हैं। यह बात स्वीकार भी कर ली जाय, तो भी इस विचार में गौणता ही पाई जाती है। ___ मायावाद, देववाद, हिंसावाद, मूर्तिपूजा, कर्मकांड, व्रत- उपवास, तीर्थयात्रा, वर्णाश्रम धर्म के अनुक्कल कुछ कहते उनको कदाचित् ही देखा जाता है। वे इन विचारों के विरोधी है । इस ग्रंथ की मायाप्रपंच और मिथ्याचार शीर्पक शब्दावली पढ़िए ; उस समय श्रापको शात हागा कि फिल प्रकार के इन सिद्धांतों की प्रतिकलता करते हैं। विचार-परंपरा श्रीमान् चलकट कहते कि संभवनः कबीर पंथ हमको एक ना धर्म मिलता है, जिन पर हिंद मुसल्मान और लान तांना धम्मी का थोड़ा बात प्रभाव पड़ा है।' ___ परंतु जब मैं गता, कि बीर साहब का मा -2 की रा . प्रिय, पशि....।
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