( ४३ ) कवीर कसौटी राम का झूठा टिकै न कोय । राम कसौटी सो सहै जो मर जीवा होय ॥ पृ० ७३५ सपनेहूँ वरड़ाइ कै जेहि मुख निकसै राम । वाके पग की पानही मेरे तन को चाम ॥ पृ० ७३६ कवीर कूकर राम को मोतिया मेरा नाउँ। गले हमारे जेवरी जहँ खींचें तहँ जाउँ । वेलेवेडियर प्रेस में छपी 'साखीसंग्रह' नामक पुस्तक में 'इन दोहों में राम के स्थान पर 'नाम' पाया जाता है (देखो- पृष्ट २१ का १२, व ९६ का ३३, व १५८ का १० दोहा)। ऐसे ही उक्त प्रेस की छपी पुस्तकों में प्रायः हरि के स्थान पर गुरू, राजा राम के स्थान पर 'परमपुरुष' इत्यादि नाम पाए जाते हैं। संभव है कि जिस प्रति से उन्होंने अपना संग्रह छापा है, उसी में ऐसापाठ हो। परंतु ऐसी चेष्टा होती श्राई है, यही मेरा कथन है। उक्त दोनों में राम शब्द से जो भाव और वाच्यार्थ की सार्थकता एवं सुंदरता है, वह नाम शब्द से नहीं। तथापि राम शब्द रखना उचित नहीं समझा गया, इसका कारण अवतार संबंधी नामों से घृणा छोड़ और क्या हो सकता है। ___ केवल अवतारों के नामों का ही परिवर्तन नहीं मिलता,. मुझे वाक्यों, शब्दों और भजनों अथवा साखियों के पदों एवं चरणों में भी न्यूनाधिक्य और अंतर मिला है। एक, शब्द को मैं तीन स्थानों से उठाता हूँ। आप उसमें हुए परिवर्तनों को देखिए। गाउ गाउ री दुलिहनी मंगलचारा। मेरे गृहं आये राजाराम भतारा ॥ नाभि कमल में वेदी रच ले ब्रह्मज्ञान उच्चारा। राम राइ सो दूलह पायो अस बड़ भाग हमारा ॥ ..
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