पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/४८

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( ४२ ) किसी न किसी प्रकार प्रत्येक शब्द और साखी को अपने विचार के अनुकूल कर लेते हैं, कीर साहव के लक्ष्य की कुछ परवाह नहीं करते। जहाँ इस प्रकार खींचातानी है, वहाँ कवीर साहब के सिद्धांत का ज्ञान दुरूह क्यों न होगा? वेलवेडियर प्रेस में मुद्रित 'ज्ञानगुदड़ी व रेख्ता' नाम की पुस्तक की भूमिका के प्रथम पृष्ठ में लिखा गया है-. "पर कितने ही पद पुराने प्रामाणिक हस्तलिखित ग्रंथो से ऐसे भी हैं जिनमें राम नाम की महिमा गाई गई है। इस नाम का मतलव औतारस्वरूप श्रीरामचंद्रजी से नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड की चोटी (शून्य ) धुन्यात्मक शब्द 'रॉ' से है। श्रीमान् वेस्कट भी यही लिखते हैं- "ऐसे वाक्यों के राम शब्द से कवीर का अभिप्राय परब्रह्म से है, न कि विष्णु के अवतार से । क्योंकि वे वीजक में लिखते हैं कि सत्य गुरु ने कभी दशरथ के घर में जन्म नहीं लिया ।" ऐसा विचार होने पर भी हम देखते हैं कि कबीर साहब के शब्दों में से पौराणिक नामों के निकालने की चेष्टा प्रथम से ही होती श्राई है, और श्रव भी हो रही है। कुछ प्रमाण भी लीजिए- गुरु नानक साहब का श्रादि-ग्रंथ साढ़े तीन सौ वर्ष का प्राचीन है। यह ग्रंथ रामावतों का नहीं है कि उसमें साग्रह राम शब्द रखने की चेष्टा की गई. हो, वरन वाह गुरु जाप करनेवालों का है। वह प्रामाणिक कितना है, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं। उसमें कबीर साहब के निम्नलिखित दाहां में राम शब्द पाया जाना है- १-देगा क्योरट दो फीर बंध पृष्ट ४ ।