इस साखी के रामहिं भजे विचारि, का अर्थ उन्होंने यह किया है-इस जगत में जाको विचाररूपी अमृत प्राप्त भया, ते सर्प के जहर से बचे। एक राम ऐसा जो वेद ने अन्वय किया था, सो उससे बचे, भाग के न्यारे हुए सटीक चीजक पूरनदास पृष्ठ ४६८ । 'भजे' के वास्तविक अर्थ स्मरण करने या गुणानुवाद गाने के स्थान पर उन्होंने भाजना अर्थात् भागना किया है। काशी छोड़कर मगहर जाने का जो प्रसिद्ध और ऐतिहासिक शब्द कवीर साहव का है, जरा उसके कतिपय शब्दों का अर्थ देखिए । 'त्योंहि मरन होय मगहर पास” इसका अर्थ सुनिए । “मग कहिए रास्ता, हर कहिए ज्ञान, सो मगहर ज्ञान मार्गता में मरन होय, लालीन होया' (पृष्ठ २४५)। अंतै मरै तो राम लजावैः' का अर्थ वे यों करते है-"जहाँ से जीव का स्फुरण हुआ सो अधि- ष्ठान छोड़कै अंतै जो नाना प्रकार की स्वर्ग भोगादि वासना अथवा जगत आदि मोहवासना में जो मरा, सो बंधन में परा। राम कहिए जीव और लज्जा कहिए बंधन (पृष्ठ २३५)" निदान इसी प्रकार उन्होंने समस्त ग्रंथ का अर्थ उलट दिया है। इस प्रसिद्ध गुरुमुख शब्द को उन्होंने मायामुख वना दिया है। अर्थात् गुरु की कही हुई वात को माया का कहा हुआ वतलाया है। यों ही शब्द के चार चरणों में से कहीं यदि एक चरण को मायामुख, बनाया है, तो दूसरे को गुरुमुख, कहीं तीसरे को मायामुख और चैाथे को गुरुमुख । कहीं पूरा शब्द गुरुमुख, कहीं आधा, कहीं तिहाई ! कहीं पूरा शब्द मायामुख, कहीं चौथाई, कहीं केवल एक चरण । माया- मुख और गुरुमुख ही नहीं, जीवमुख आदि की कल्पना भी शब्दों में की गई है। उन्हें वाच्यार्थ से, कवि के भाव से, 'अन्वय से, शब्दों के उचितार्थ से कुछ प्रयोजन नहीं। वे
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