पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/४३

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तक को पूजते हैं। त्यागी निस्संदेह अपने को हिंदू धर्म के सिद्धांतो से अलग रखते हैं और वे हिंदू धर्म के क्रिया- कलाप में नहीं फँसना चाहते; किंतु यतः उनका यह संस्कार वना है कि वे हिंदू हैं, इसलिये वे अनेक अवसरों पर हिंदू क्रियाकलाप में फंसे भी दृष्टिगत होते हैं। परंतु यह सत्य है कि कबीरपंथी साधु हिंदू समाज से एक प्रकार पृथक् से रहते हैं, उसमें उनकी यथेष्ट प्रतिपत्ति नहीं। इनका अपर हिंदू धर्म-संप्रदायों से कुछ वैमनस्य और द्वेष सा रहता है। धर्मसंकट कवीर साहव का धर्म-सिद्धांत क्या था, मैं समझता है, यह अभ्रांत रीति से नहीं बतलाया जा सकता। मैं इसकी मीमांसा के लिये तत्पर होकर धर्मसंकट में पड़ गया हूँ। उनके सिद्धांतों के जानने के साधन उनकी शब्दावली और साखियाँ हैं परंतु वे हम लोगों तक वास्तविक रूप में नहीं पहुँचती। यह बतलाना भी कठिन है कि कौन शब्द उनका रचा है, कौन नहीं। श्रीमान् वेस्कट का निम्नलिखित वाक्य, जिसे मैं ऊपर लिख आया हूँ, आप लोग न भूले होंगे। ___यह विचारना कठिन है कि वे ठीक उन्हीं शब्दों में लिखी गई हैं, जो गुरु के मुख से निकले हैं। और यह बात तो और भी कठिनता से मानी जा सकती है कि उनमें और शब्द नहीं मिला दिए गए हैं।" एक दूसरे स्थान पर वह कहते हैं-

  • कम से कम यह वात मानने के लिये हमको कोई स्वत्व

नहीं है कि कवीर की शिक्षा वही शिक्षा है कि जिसको कवीर- पंथ के महंत आजकल देते हैं।" -कवीर ऐंड दी कवीर पंथ, पृष्ठ-४६