पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/३७

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( ३१ ) कविता में अश्लीलता भी है। कोई कोई कविताएँ तो इतनी अश्लील हैं कि मैं उन्हें यहाँ उठा तक नहीं सकता। यदि आप लोग ऐसी कविताएँ देखना चाहें, तो नमूने के लिये साखीसंग्रह के पृष्ठ १४८ का छठा, पृष्ट १७५ का २६, २७, २८ और पृष्ठ १८२ का अंतिम दोहा देखिए । उनकी कविता में असंयत- भापिता भी दृष्टिगत होती है। वे कहते हैं- बोली एक अमोल है जो कोई बोलै जानि । हिये तराजू तौलि के तव मुख बाहर आनि ॥ कवीर वीजक, पृष्ट ६२३ साधु भया तो क्या भया जो नहिं वोल विचार । हत पराई आतमा लिये जीभ तलवार ॥ कवीर वीजक, पृष्ट ६३१ साधु लच्छन सुगुनवंत गंभार है वचन लैालीन भाखा सुनावै । फहरी पातरी अधम का काम है रॉड का रोवना भाँड़ गावै ॥ ज्ञानगुदड़ी, पृष्ठ ३२ किंतु खेद है कि जब वे विरोध करने पर उतारू होते है, तव इन बातों को भूल जाते हैं । यह दोप उनकी कविता में प्रायः मिलता है । नमूने के लिये साखी संग्रह पृष्ट १८७ का दोहा १९, २० और ज्ञानगुदड़ी तथा रेखते नामक ग्रंथ का रेखता ६० देखिए । मैंने इस प्रकार की कविताओं से अपने संग्रह को बचाया है; और जहाँ शब्दों के हेर फेर या हस्व दीर्घ करने से काम चल गया, वहाँ छंदोभंग भा नहीं रहने दिया है। _____कवीर साहव के ग्रंथों का आदर कविता-दृष्टि से नहीं, विचार-दृष्टि से है। उन्होंने अपने विचार दृढ़ता और कट्टर- पन के साथ प्रकट किए हैं। उनमें स्वाधीनता की मात्रा भी अधिक झलकती है।