( २९ ) के महाराज विश्वनाथसिंह और दूसरे के नागझारी जिला बुरहानपुर निवासी कबीरपंथी साधु पूरनदास हैं, जो सन् १८७० ई० में जीवित थे। वैप्टिस्ट मिशन, मुंगेर के रेवरेंड- प्रेमचंद ने भी इसकी एक आवृत्ति कलकत्ते में सन् १८८० ई० में छपाई थी। इन ग्रंथों के अतिरिक्त आगम और वानी इत्यादि भिन्न भिन्न नामों की कुछ और स्फुट कविताएँ भी पाई जाती हैं। श्रीमान् वेस्कट ने अपने ग्रंथ में कवीर पंथ के ८४ ग्रंथों के नाम लिखे हैं। इन ग्रंथों में कबीर कसोटी और कवीर मनसूर आदि आधुनिक ग्रंथों के भी नाम हैं, जिनका रचना-काल अर्द्धशताब्दी से कम है। इसके अतिरिक्त उन्होंने तीन सटीक वीजकों को भी पृथक् पृथक् गिना है । चौरासी अंग की साखी जो एक ग्रंथ है, उसके सतसंग का अंग, समदरसी का अंग, आदि बारह अंगों की साखियों को अलग अलग लिखकर उनको वारह पुस्तके माना है, इसीसे उनकी नामावली लंबी हो गई है। उसमें मूसावोध, महम्मदवोध, हनुमानवोध आदि कतिपय ऐसे ग्रंथों के नाम हैं, जो सर्वथा कल्पित हैं। क्योंकि उक्त महोदयों और कवीर साहब के समय में कितना अंतर है, यह विद्वानों को अविदित नहीं है। उन्होंने अमरमूल आदि दो एक प्राचीन ग्रंथों का नाम भी अपनी सूची में लिखा है और सुखनिधान आदि कई ऐसे ग्रंथों के नाम भी लिखे हैं, जो उक्त २१ ग्रंथों के अंतर्गत हैं। प्रोफेसर एच. एच. विलसन ने अपने रिलिजन आफ दी हिज" नामक ग्रंथ के प्रथम खंड, पृष्ठ ७६-७७ में कवीर साहव के निम्नलिखित ग्रंथों के ही नाम लिखे हैं। यह कहना कि ये ग्रंथ उक्त २१ ग्रंथों के ही अंतःपाती हैं, वाहुल्य मात्र है। १-आनंद रामसागर, २-बलख की रमैनी, ३-चाँचर,
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