( २८ ) १९-नमैनी-इसमें कबीर पंथ के सिद्धांतों का शब्दों में विस्तृत वर्णन है। स्वधर्म-प्रतिपादन और परधर्म-खंडन 'पंथ के सिद्धांतानुसार किया गया है। कूट शब्द भी इसमें ‘पाए जाते हैं। २०-साखी-इसमें पाँच सहस्र दोहे हैं, जो पंथ में साखी नास से पुकारे जाते हैं। इन दोहों में अनेक प्रकार की नीति और धर्म की शिक्षाएँ हैं। चौरासी अंग की साखी इसी के अंतर्गत है । इस ग्रंथ की कतिपय साखियाँ बड़ी ही सुंदर हैं। २१-बीजक-इस ग्रंथ में ६५४ अध्याय हैं । इसको कवीर- पंथी लोग बहुत मानते हैं। बीजक दो हैं पर उन दोनों में बहुत अंतर नहीं है। कवीरपंथी कहते हैं कि इनमें जो वड़ा वीजक है, उसे स्वयं कबीर साहव ने काशिराज से कहा था दूसरे वीजक को भग्गूदास नामक कवीर के एक शिष्य ने संग्रह किया है। यह दूसरा बीजक ही अधिक प्रचलित है । इसमें स्वमत-प्रतिपादन की अपेक्षा अपर धर्मों पर आक्रमण और आक्षेप ही अधिक हैं। यह भग्गूदास भी कबीरपंथ की द्वादश शाखाओं में से एक शाखा का प्रवर्तक है। इसके परंपरागत शिष्य धनौती नामक ग्राम में रहते हैं। श्रीमान् वेस्कट कहते हैं-"वीजक कबीर साहब की शिक्षा का प्रामाणिक ग्रंथ मान लिया गया है। यह संभवतः १५७० ई० में या सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन द्वारा नानक की शिक्षा आदि-गंथ में लिखे जाने के बीस वर्ष पहले लिखा गया था। बहुत से वचन जो आदि ग्रंथ में कवीर के कथित माने जाते हैं, बीजक में भी पाए जाते हैं।" क. ऐ, क., पृष्ठ. ७ ____एक दूसरे बीजक की कई छपी आवृत्तियाँ हैं। उनमें से दो, जो अधिक प्रसिद्ध हैं, सटीक हैं । एक के टीकाकार रीवा
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/३४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।