( २५० ) अहंभाव रमैया की दुलहिन लूटा बजार । सुरपुर लूट नागपुर लूटा तीन लोफ मचा छादाकारा ।। ब्रामा लूट महादेव लूटे नारद मुनि फे पर पिटार। निगी की मिगी फरि डारी पारासर के उदर विदार।। कनका चिदफासी लूट लूटे जोगेसर. करन विचार । हम तो बचिगे साहब दया से सन्द डोर गहि उतरे पार ।। कहत कबीर सुनो भाई साधा इन ठगनी से रहा हुसिश्राग।२३९। जब हम रहल रहा नहि कोई । हमर माह रहल सब काई । कहहु सो राम कोन तोर सेवा । सो समुझाय कहा माहि.देवा।। फुर फुर कहा मारु सब कोई । झूठे भूठा संगति हाई ।। आँधर कह सर्व हम देखा । तहे दिठियार पैठि मुँह पखा।। एहि विधि कहीं मानु सब काई । जल मुख तस जो हृदयाहाई।। कहत कबीर हंस मुकुताई । हमरे कहले दुटिही भाई ।।२२०।। हम न मरे मरिहें संसारा । हमको मिला जियावन-बारा ।। अव ना मरों मोर मन माना । सोइ मुवा जिन राम न जाना। साकत मरे संत जन जीवें । भरि भरिराम रसायन पीवें।। हरि मरिहै तो हमहूं मरिहै । हरि न मरे हम काहे को मरिहें।। कह कबीर मन मनहिं मिलावा।अमर भए सुख सागर पावा२२१ जहवा से आयो अमर वह 'देसवा । पानी न पौन न धरति अकसवा ।। चाँद न सूर न रैन दिवसवा । वाम्हन छत्रि न सूद्र वयसवा ।। मुगल पठान अरु सैय्यद सेखवा । आदि जोति नहिं गौर गनेसवा ।।
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