कपड़ा भीगा है, तो चकित हो गया और बोला-तुम कैसे श्राई ? लोई ने कहा-मेरे पति मुझे अपने कंधे पर चढ़ाकर लाए हैं। यह सुनकर साहकार के लड़के के जी में विजली कौंध गई, उजाले के लामने अँधियारा न ठहर सका। वह लोई के पाँवों पर गिर पड़ा और बोला-आप मेरी माँ हैं। कवीर साहब ने मेरी आँख खोलने के लिये ही इस कठिनाई का सामना किया है । इतना कहकर वह घर से बाहर निकल पाया और कवीर साहब के पाँवों से लिपट गया तथा उसी दिन से उनका सच्चा सेवक बन गया। श्रीमान् वेस्कट लिखते हैं कि "कवीर साहव के वर्णित जीवन चरित में एक प्रकार का काव्य' का सा सौंदर्य पाया जाता है। यह बात सत्य है, कि मेरी प्रवृत्ति इन दो प्रसंगों के अतिरिक्त किसी दूसरे प्रसंग को लिखने को नहीं होती। आप लोग इन दो कथानकों से ही उनके शील और सदाचार के विषय में बहुत कुछ अवगत हो सकते हैं। धर्मप्रचार भागीरथी के तट की बातें लिखकर "रहनुमायाने हिंद” के रचयिता लिखते हैं-"रामानंद कवीर के वशरे से कुछ आसारे सआदत देखकर उन्हें अपने मठ में ले आए और वह उसी रोज वाजाब्ता रामानंद के मजहव में दाखिल हो गए। मगर हम यह नहीं बता सकते. कि वह कब तक अपने गरोह की इताअंत व पैरवी में सावित-कदम रहे। गालिवन् मुरशिद की वफात के बाद उन्होंने अपने मजहब का वाज व तलकीन शुरू की। मेरा भी यही विचार है। उनका उपदेश देने का ढंग निराला था । संभव है कि वे कभी कभी:यों भी __.--देखो, कबीर ऐड द कबीर पंथ, पृष्ठ ५९। . ...... ..
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