पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२४९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २२९ )

इक मन इक चित ह्वै रहों रहों नाम लव लाय।
पलक न तुमैं विसारिहौं यह तन रहै कि जाय॥
इतना कियो करार तवै प्रभु वाहर कीना।
विसर गयो वह ठाँव भयो माया आधीना॥
भूली वात उदर की यहाँ तो मत भइ आन।
वारह वरस ऐसही बीते डोलत फिरत अजान।
विखया पवन समान तवै ज्वानी भदमाते।
चलत निहारै छाँह तमक के वोलै वातें॥
चोवा चंदन लाइ के पहिरे वसन वनाय।
गलियों में डोलत फिरै परतिय लख मुसुकाय।।
गा तरुनापा बीत वुढ़ाया आइ तुलाना।
कंपन लागे सीस चलत दोउ पाँव पिराना।।
नैन नासिका चूवन लागे करन सुनै नहिं वात।
कंठ माहिं कफ घेरि लियो है विसर गए सव नात॥
मात पिता सुत नारि कहौ काके सँग लागी।
तन मन भजि लो नाम काम सव होयँ सुभागी॥
नहिं तो काल गरासिहै परिहौ जम के जार।
विन सतगुरु नहिं वाँचिहौ हिरदय करहु विचार॥
सुफल होय यह देह नेह सतगुरु से कीजै।
मुक्ती मारग यही संत चरनन चित दीज॥
नाम जपो निरभय रहो अंग न व्यापै पीर।
जरा भरन बहु संसय मेटै गावैं दास कवीर॥१५८॥
तोरी गठरी में लागे चार, वटोहिया का रे सोवै।
पाँच पचीस तीन हैं चोरवा, यह सब कीन्हा सोर॥
जाग सवेरा वाट अनेरा, फिर नहिं लागै जोर।
भव सागर एक नदी वहत है, विन उतरे जीव चोर॥
कहैं कवीर सुनो भाइ साधो, जागत कीजै भोर॥१५॥