पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२३१

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( २१३ ) तेरे घर में हुआ अँधेर भरम की राती। नहिं भई पिया से भेंट रही पछताती ॥ सिख नैन सैन सो खोज हूँढ़ ले आती। मेरे पिया मिले सुख चैन नाम गुन गाती ।। तेरि आवागमन की त्रास सवै मिट जाती। छवि देखत भई है निहाल काल मुरझाती। सखि मान सवोवर चलो हंस जहँ पाती। यह कह कवार विचार सीप मिलि स्वातीना१०८। तलफै विन वालम मोर जिया । । दिन नहिं चैन रात नहिं निंदिया तलफ तलफ के भोर किया। तन मन मोर रहँठ अस डोले सून सेज पर जनम छिया। नैन थकित भए पंथ न सूझै साँई वेदरदी सुध न लिया । कहत कवीर सुनो भाई साधो हरो पीर दुख जोर किया१०९।। पिया मिलन की त्रास रहैंकव ला खरी। ऊँचे नहिं चढ़ि जाय मने लजा भरी। पाँव नहीं ठहराय चहूँ गिर गिर पहुँ। • फिरि फिरि चढ़हुँ सँम्हारि चरन आगे धरूँ।। अंग अंग थहराय तो बहु विधि डरि रहूँ। करम कपट मग घेरि तो भ्रम में परि रहूँ। वारी निपट अनारि तो झीनी गैल है। अटपट चाल तुम्हार मिलन कस होइहै। छोरो कुमति विकार सुमति गहि लीजिए। सतगुरु शब्द सम्हारि चरन चित दीजिए। अंतर पट दे खोल सब्द उर लाव री। दिल विच दास कवीर मिले तोहि वावरी ॥११॥