पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२१९

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( २०१ ) सील संतोख ते सव्द जा मुख वसे, संतजन जौहरी साँच गानी। वदन विकसितरहै ख्याल आनंद में,अधर में मधुरमुसकात वानी॥ साँच डोलै नहीं झूठ बोलै नहीं, सुरत में सुमति सोइ श्रेष्ठ ज्ञानी । कहत है। ज्ञान पुकारि के सवन सों, देत उपदेस दिल दर्द जानी। ज्ञान को पूर हैरहनि को सूर है, दया की भक्ति दिल माहिं ठानी। ओरते छोर लौं एक रस रहत है,ऐसजन जगत में विरले प्रानी । ठग्गवट-पार संसार में भरिरहे, हंस की चाल कहँ काग जानी। चपलता चतुर हैं वने वहु चीकने, वात में ठीक पै कपट ठानी। कहा तिनसोकहोदया जिनके नहीं,घात वहुतै करें वकुल ध्यानी। दुर्मती जीव की दुविध छुटै नहीं,जन्म जन्मात्र पड़ नर्क खानी। काग कुबुद्धि सुबुद्धि पावै कहाँ, कठिन कठोर विकराल वानी। अगिन के पुंज हैं सीतलता तन नहीं, अमृत और विप दोउ एक सानी। कहासाखी कहेसुमतिजाकी नहीं, साँचकीचाल विन धूरधानी। सुकृति और सत्त की चाल साँची सही, काग वक अधम की कौन खानी। कहै कब्बीर कोउ सुबर जन जौहरी, सदा सव धान पय नीर छानी ॥७॥ है साधू संसार में कँवला जल माहीं। सदा सरवदा संग रहै परसत जल नाहीं ॥ जल केरी ज्यों कूकहीजल माहि रहानी । पंख पानी वेधै नहीं कछु असर न जानी ॥ मीन तरै जल ऊपरै जल लगै न भारा। श्राड़ अटक मानें नहीं पैरे जल धारा ॥ जैसे सीप समुद्र में चित देत अकासा । कुंभ कला कै.खेलही तस साहेव दास ॥