( १८९ ) लागा रहै चरन सतगुरु के चंद चकोर की धारा। कहैं कवीर सुनो भाइ साधो, नख शिख शब्द हमारा ॥३९॥ शब्द कोखोजि ले शब्द कोवूझिले शब्द ही शब्द तू चलोभाई। शब्द अकास है शब्द पाताल है शब्द ते पिंड ब्रह्मांड छाई ।। शब्द वयना बसै शब्द सरवन वसै शब्दके ख्याल मूरति वनाई। शब्द ही वेद है शब्द ही नाद है शब्द ही शास्त्र वहुभाँतिगाई। शब्द ही यंत्र है शब्द ही मंत्र है शब्द ही गुरू सिख को सुनाई। शब्द ही तत्व है शब्द निःतत्व है शब्द आकार निराकार भाई ॥ शब्द ही पुरुख है शब्द ही नारि है शब्द ही तीन देवा थपाई। शब्द ही दृष्ट अनदृष्ट ओंकार है शब्द ही सकल ब्रह्मांड जाई॥ कहें कवीर तें शब्द को परिख ले शब्द ही आप करतार भाई॥४॥ माया-प्रपंच रांम तेरी माया ढुंद मचावै। गति मति वाकी सममि परै नहिं सुर नर मुनिहिं नचावै॥ का सेमर के साख बढ़े ये फूल अनूपम वानी । केतिक चातक लागि रहे हैं चाखत रुवा उड़ानी। कहा खजूर बड़ाई तेरी फल कोई नहिं पावै। . ग्रीपम ऋतु जव आइ तुलानी छाया काम न आवै ।। अपना चतुर और को सिंखवै कामिनि कनक सयानी।। कहै कबीर सुनो हो संतो राम-चरण रति मानि ॥४॥ ___माया महा ठगिनि हम जानी। तिरगुन फाँस लिए कर डोले वोलै मधुरी वानी ।। केशव के कमला है वैठी शिव के भवन भवानी । पंडा के मूरति है वैठी तीरथ में भइ .पानी ।। ..
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२०७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।