पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२०२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कर नैनों दीदार पिंड से न्यारा है। हिरदे सोच विचार सो अंड मँझारा है। चारी जारी निंदा चारो, मिथ्या तज सतगुरु सिर धारो । सतसँग कर सत नाम उचारो, सनमुख लहु दीदारा है ॥ जो जन ऐसी करी कमाई, तिनकी जग फैली रोसनाई । अष्ट प्रमान जगह सुख पाई, देखा अंड मँझारा है ॥ सोइ अंड को अवगत राई, अकह अमरपुर नकल बनाई। सुद्ध ब्रह्म पद तहँ ठहराई, नाम अनामी धारा है॥ सतवीं सुन्न अंड के माही, झिलमिलहट की नकल बनाई । महा काल तहँ बान रहाई, अगम पुरुष उच्चारा है। छठवीं सुन्न जो अंड मँझारा, अगम महल की नकल सुधारा । निरगुन काल तहाँ यह धारा, अलख पुरुष कहु न्यारा है ।। पंचम सुन्न अंड के माहीं, सत्त लोक की नकल वनाई । माया सहित निरंजन राई, सत्त पुरुप दीदारा है॥ चौथी सुन्न अंड के माहीं, पद निर्वान की नकल बनाई। अविगत कला है सतगुरु आई, सो सोहं यह सारा है ॥ ताजी मुन्न की सुनो बड़ाई, एक सुन्न के दोय बनाई। ऊपर महा सुन्न अधिकाई नीचे मुन्न पसारा है। सतवीं मुन्न महाकाल रहाई, तासु कला महा मुन्न समाई । पारब्रह्म कर थाप्यो ताही, सो निःश्रच्छर सारा है। छठवीं सुन्न जो निरगुन राई, तामु कला या मुन्न समाई । अच्छर ब्रह्म कहें पुनि ताहीं, सेई सब्द ररंकारा है॥ पंचम मुन्न निरंजन राई, तानु कला दुजी सुन छाई । पुन्य प्रकिरती पदवी पाई, सरगुन मुद्ध पसारा है॥ पुरुष प्रकृति दूजी सुन माहीं, तानु कला परिथम सुनाई। जोत निरंजन नाम धराई, सरगुन शूल पसारा है॥