पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१९३

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( १७५ ) चौथे सुन्न अजोख कहाई, सुद्ध ब्रह्म के ध्यान समाई। आद्या याँ वीजा ले आई, देखो दृष्टि पसारा है। पंचम सुन्न अकेल कहाई, तहँ अदली बँदिवान रहाई । जिनका सतगुरु न्याव चुकाई, गादा अदली सारा है। षष्ठे सार सुन्न कहलाई, सार भंडार याहि के माहीं। नांचे रचता जाहि रचाई, जाका सकल पसारा है। सतवें सत्त सुन्न कहलाई, सत्त भंडार याहि के माहीं। निःतत रचना ताहि रचाई, जो सवहिन ते न्यारा है। सत सुन ऊपर सत की नगरी, वाट विहंगम वाँकी डगरी। सो पहुँचे चाले विन पगरी, ऐसा खेल अपारा है। पहली चकरि समाध कहाई, निज हंसन सतगुरु मति पाई। वेद भरम सव दिए उड़ाई, तज तिरगुन भए न्यारा है। दूजी चकरि अगाध कहाई, जिन सतगुरु सँग द्रोह कराई। पीछे आन गहे सरनाई, सो यहँ आन पधारा है। तीजी चकरीमुनि करनामा, निज मुनियन सतगुरु मम जाना। सो मुनियम यहँ आय रहाना, करम भरम तज डारा है।। चौथी चकरी धुन है भाई, जिन हंसन धुन ध्यान लगाई। धुन सँग पहुँचे हमरे पाहीं, यह धुन सब्द मँझारा है। पंचम चकरी रास जो भाखी, अलमीना है तहँ मध झाँकी। लीला कोट अनंत वहाँ की, रास विलास अपारा है। पष्ठम चकरि विलास कहाई, निज सतगुरु सँग प्रीति निवाही। छुटते देह जगह यह पाई, फिर नहिं भव अवतारा है।। सतवीं चकरि विनोद कहानो, कोटिन वंस गुरन तहँ जानो। कलि में वोध किया ज्यों मानो, अंधकार उँजियारा है।। . अठवीं चकरि अनुरोध वखाना, तहाँ जुलहटी ताना ताना। जा का नाम कवार वखाना, जो संतन सिर धारा है।