पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१९२

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पता भित चिsedi पार जाहीं।। ( १७४ ) पता एक हंसा उँजियारा। . शोभित चिकुर उदय जनु तारा ॥ . विमल वास जहवाँ पौढ़ाहीं।। जोजन चार घ्रान जो जाहीं।। स्वेत मनोहर छत्र सिर छाजा । बूझि न परै रंक अरु राजा।। नहिं तहँ नरक स्वर्ग की खानी । अमृत वचन वोलै भल वानी ।। अस सुख हमरे घरन महँ कहें कबीर वुझाय । सत्य सब्द को जानि के अस्थिर बैठे आय ।। २० ॥ तू सूरत नैन निहार अंड के पारा है। तृ हिरदे सोच विचार यह देस हमारा है ।। पहले ध्यान गुरन का धारो, सुरत निरत मन पवन चितारो। सुहेलना धुन नाम उचारो, लहु सतगुरु दीदारा है। सतगुरु दरस होय जव भाई, वह दें तुमको नाम चिताई। सुरत सब्द दोउ भेद बताई, देख संख के पारा है । सतगुरु कृपा दृष्टि पहिचाना, अंड सिखर बेहद मैदाना । सहज दास तहँ रोपा थाना, अग्र दीप सरदारा है ।। सात सुन्न बेहद के माहीं, सात संख तिनकी ऊँचाई । तीन सुन्न लों काल कहाई, आगे सत्त पसारा है। परथम अभय सुन्न है भाई, कन्या कढ़ यहँ वाहर आई। जोग सँतायन पूछो वाई, दारा वह भरतारा है ।। दूजे सकल सुन्न कर गाई, माया सहित निरंजन राई। अमर कोट के नकल वनाई, अँड मध रच्यो पसारा है। तीजे है मह सुन्न सु खासी, महा काल यहँ कन्या ग्रासी । जोग सँतायन प्रा अविनासी, गल नख छेद निकारा है।