( १६२ ) पद सेत सुन्न मद षट्दल कँवल बताया है। पारब्रह्म महा सुन्न मॅझारा सोइ निःअछर हराया है। भंवर गुफा में सोहं राजे मुरली अधिक बजाया है। सत्त लोक सत पुरुख विराज अलख अगम दोउ भाया है। पुरुख अनामी सब पर स्वामी ब्रह्मउँ पार जो गया है। यह सब वाते देही माँही प्रतिक्वि अंड जो पाया है। प्रतिबिंब पिंड ब्रहमंड है नकली असली पार बताया है। यह कबीर सतलोक सार है पुरुष नियारा पाया है ॥ २॥ संता वीजक मन परमाना। कैयक खोजी खोजि थके कोइ बिरला जन पहिचाना। चारिउ जुग औ निगम चार औ गावै पंथ अपारा । विष्णु विरंचि रुद्र ऋषि गावे सेस न पावै पारा। कोइ निरगुन सरगुन ठहरावें कोई जोति वतावें । नाम धनी को सब ठहरा रूप को नहीं लखावै । कोउ सूछम असथूल वताचे कोउ अच्छर निज साँचा । सतगुरु कहँ विरले पहिचान भूले फिरै अलाँचा । लोम के भक्ति सरै नांह कामा साहब परम सयाना। अगम अगोचर धाम धनी को सवै कहैं हाँ जाना। दिखै न पंथ मिलै नहिं पंथी हूँढ़त ठौर ठिकाना । कोउ ठहरावै शून्यक कीन्हा जोति एक परमाना। कोउ कह रूप रेख नहिं वाके धरत कौन को ध्याना। रोम रोम में परगट कर्ता काहे भरम भुलाना । पच्छ अपच्छ सवै पचि हारे कर्ता कोइ न विचारा। कौन रूप है साँचा साहब नहिं कोई विस्तारा । बहु पर परतीत दृढ़ावै साँचे को विसरावै। कलपत कोटि जनम युगवागै दशन कतहुँ न पाचै । परम दयालु परम पुरुषोत्तम ताहि चीन्ह नर कोई। ततपर हाल निहाल करत है रीझत है निज सोई। वधिक कम करि भक्ति दृढ़ावै नाना मत को ज्ञानी। वीजक मत कोइ विरला जाने भूलि फिरे अभिमानी। कह कवीर कर्ता
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१८०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।