( १४२ ) कविरा माता नाम का मद मतवाला नाहि । नाम पियाला जो पिये सो मतवाला नाहिं ॥५६३॥ शील सील छिमा जव ऊपजै अलख दृष्टि तब होय । विना सील पहुँचे नहीं लाख कथ जो कोय ।।५६४॥ सीलवंत सव तें बड़ा सर्व रतन की खानि । तीन लोक की संपदा रही सील में यानि ॥५६५॥ शानी ध्यानी संजमी दाता सूर अनेक । जपिया तपिया बहुत हैं सीलवंत कोइ एक ॥५६६॥ मुख का सागर सील है कोइ न पावै थाह । सन्द विना साधू नहीं द्रव्य बिना नहीं साह ॥५६७।। घायल ऊपर धाव ले टोटं त्यागी सोय । भर जावन में सीलबत विरला होय तो होय ।।५६८।। क्षमा छिमा बहन को चाहिये छोटन को उत्पात । कहा चिमण को घटि गया जो भृगु मारी लान 11५६५॥ जहाँ दया नहँ धर्म है जहाँ लाम तह पाप । जहां क्रोध नहँ काल, जहाँ छिमा तह श्राप ।।५।। फरगस सम दुर्जन वचन रह संत जन टारि । बिजली पर समुद्र में कहा मांगी जारि ।।५।। गंगद गाद यानी मां काट कुट यनराय । रुटिल पवन मा मह और से सहा न जाय ॥५॥
पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१६०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।