( १० ) किंतु वे सूफी और शेख तकी के चेले थे, यह वात निश्चित- रूप से स्वीकृत नहीं की जा सकती। श्रीयुत वेस्कट ने अपने ग्रंथ में जितने प्रमाण दिखलाए हैं वे सव बाहरी हैं। कीर साहब के वचनों अथवा उनके ग्रंथों से उन्होंने कोई प्रमाण ऐसा नहीं दिया जो उनके सिद्धांत को पुष्ट करे। बाहरी प्रमाणों की अपेक्षा ऐसे प्रमाण कितने मान्य और विश्वसनीय हैं, यह बतलाना व्यर्थ है। कबीर साहब कहते हैं- भक्ती लायर ऊपजी, लाये रामानंद । परगट करी कबीर ने, सात दीप नो खंड ॥ चौरासी अंग की साखी, भक्ति का अंग। काशी में हम प्रगट भये हैं रामानंद चेताये। कवीर शब्दावली, द्वितीय भाग, पृष्ट ६१ काशी में कीरति मुन श्राई, कवीर मोहि कथा बुझाई । गुरु रामानंद चरण करल पर धाविन' दीनी बार ॥ कबीर-कमाटी, पृष्ट ५ कबीर साहब के ये वचन ही पर्याप्त है, जो यह सिद्ध करते हैं कि चे स्वामी रामानंद के शिष्य थे। तथापि मैं कुछ बाही प्रमाग भी दूंगा। धर्मदास जी कबीर साहब के प्रधान शिष्य थे। चं कबीर पंथ की एक शाल्वर के प्राचार्य भी है। वे कहते हैं- काशी में प्रगट दाम ऋहाय नीम के गृह याय । गमानंद के शिष्य भय, भवसागर पंथ चलाये ॥ कबीर-कनीटी, पृष्ठ ३३ फारमी की पक नवागीय दविन्नों में मुमिनमानी कश्मीर- वाला, जो प्रकार के समय में हुया है, लिपना:- "कार जाला और पकवरवादी थे। मायाव्यात्मिक -1-पायिन माया।
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