निवासी शेख तकी का शिष्यत्व स्वीकृत किया। तदुपरांत वे यह कहते हैं- ____ "हमने संभवतः पूरी तौर पर इस बात को सिद्ध कर दिया है कि यह असंभव नहीं है कि कवीर मुसल्मान और सूफी दोनों रहे हो । "मगहर में उनकी कत्र है जो मुसल्मानों के संरक्षण में रहती आई है। किंतु यह वात आश्चर्यजनक है कि एक मुसल्मान हिंदी साहित्य का जन्मदाता हो। परंतु इसको भी नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुओं ने भी फारसी कविता लिखने में प्रतिष्ठा पाई है। फिर, कवीर साधारण योग्यता और निश्चय के मनुष्य नहीं थे। उनके जीवन का उद्देश्य यह था कि अपनी शिक्षाओं को उन लोगों से स्वीकृत करावें, जो हिंदी भाषा द्वारा ज्ञान प्राप्त कर सकते थे।" कवीर ऐंड कीर पंथ, पृ० ४४ कवीर साहब का मुसल्मान होना निश्चित है। उन्होंने स्वयं स्थान स्थान पर जोलाहा कहकर अपना परिचय दिया है। जव जन्मकाल ही से वे जोलाहे के घर में पले थे, तो उनका दूसरा संस्कार हो नहीं सकता था। उनके जी में यह चात समा भी नहीं सकती थी कि मैं हिंदू संतान हूँ। नीचे के पदों को देखिए । इनमें किस स्वाभाविकता के साथ वे अपने को जोलाहा स्वीकार करते हैं- छाँड़े लोक अमृत की काया जग में जोलह कहाया । कार वीजक, पृष्ठ ६०५ कहे कबीर राम रस माते जोलहा दास कीरा हो। प्रथम ककहरा, चरण १५ जाति जुलाहा क्या करै हिरदे वसे गोपाल । कविर रमैया कंठ मिल चुकै सरव जंजाल ॥ आदि ग्रंथ, पृष्ट ७३७, साखी ८२
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