समाज की रोमांचकारी कुप्रथा के निंदनीय आतंकवश, यह सशंकिता विधवा अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपनी इस प्यारी संतान को त्याग देने के लिये वाध्य हुई। कुछ घड़ी पीछे लहर तालाव की हरी शांतिमयी भूमि में इसे जोलाहा दंपति ने पाया, यह प्रसंग भी आप लोगों को अविदित नहीं है। ____ इन दो उत्तरों में से मुझे दूसरा उत्तर युक्तिसंगत और प्रामाणिक ज्ञात होता है। पहले उत्तर को श्रद्धा, विश्वास वाले कीरपंथी ही या उन्हीं के से विचार के कुछ लोग मान सकते हैं। परंतु दूसरा उत्तर सर्वमान्य और ऐतिहासिक है। उसको विजातीय और विधर्मी भी स्वीकार कर सकता है। यह कोई नहीं कहता कि कवीर साहव नीमा और नीरू के औरस पुत्र थे और जब वे इनके औरल पुत्र नहीं माने जाते, तो यह अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि किसी अन्य की संतान थे। और जब उनका अन्य की संतान होना निश्चित है, तो हम को विना किसी आपत्ति के दूसरा उत्तर ही स्वीकार करना पड़ेगा। कहा जा सकता है कि दूसरे उत्तर में भी स्वामीजी की आशीर्वाद की एक अस्वाभाविक वार्ता सम्मिलन है। किंतु इस अंश का मुख्य घटना के साथ कोई विशेष संबंध नहीं है। यह अंश निकाल देने पर भी वास्तविक घटना की स्वाभाविकता में अंतर नहीं पाता। मुझे मात होता है कि मालग-विधवा के कलंक-भंजन अथवा कवीर साहब की जन्मकथा का गौरवमयी बनाने के लिये ही स्वामी जी की पाशीर्वाद-संबंधिनी वार्ता का इस घटना के साथ संयोग किया गया है। ____ कबीर माहव के बाल्यकाल की बात किमी ग्रंथ में कुछ लिम्बी नहीं मिलती। कबीरपंथियों के ग्रंथों में इतना लिया अवश्य मिलता है कि वे बाल्यकाल ही में धर्मपरायण और
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